शोध में शामिल वैज्ञानिक और अध्ययन के सह-लेखक स्टीफनो मर्लर का कहना है कि इस शोध से स्पष्ट है कि स्क्रीनिंग, आइसोलेशन और जांच-परीक्षण के बाद भी इस वायरस को फैलने से रोकना कितना मुश्किल है। सबसे बड़ी परेशानी यह है कि संक्रमित होने के बावजूद इन युवाओं में बुखार, खांसी और सांस लेने में परेशानी जैसे हल्के या गंभीर किसी भी प्रकार के लक्षण नहीं उभरते। मर्लर संक्रमित बीमारियों के संक्रमण का गणितीय मॉडल बनाने के विशेषज्ञ हैं।
मर्लर और उनके साथियों ने इटली के जिस लोम्बार्डी नामक शहर में यह शोध किया वहां कोरोना विस्फोट के शुरुआती महीनों में वायरस का बिल्कुल नया स्ट्रेन पाया गया था। शोधकर्ताओं ने 5484 लोगों के संक्रमण संबंधी डेटा का अध्ययन किया था जिसमें 2824 लोगों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि की गई थी। मर्लर के अनुसार शोध में शामिल इन 2824 कोरोना संदिग्धों में से केवल 876 यानी करीब 31 फीसदी में ही लक्षण नजर आए। इनमें से ज्यादातर में सांस लेने में परेशानी और बुखार-खांसी जैसे कोई लक्षण नहीं थे। लेकिन उनके शरीर में वायरस मौजूद था। जबकि 20 साल से कम उम्र के 81.9 फीसदी युवाओं में कोई लक्षण नही दिेखे।
वहीं अध्ययन में शामिल 80 साल या इससे ज्यादा की उम्र के समूह में 35.4 फीसदी लोगों में भी कोरोना के हल्के या गंभीर लक्षण नजर नहीं आए। ऐसे ही 60 वर्ष या उससे कम उम्र के 73.9 फीसदी बुजुर्गों में भी बुखार या सांस लेने में तकलीफ जैसे सामान्य लक्षण नहीं थे। इन बुजुर्गों के शरीर का तापमान 37.5 डिग्री सेल्सियस था। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में यह भी पाया कि उम्र बढऩे के साथ ही कोरोना संक्रमण के लक्षण नजर आने की संभावना भी बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों ने बताया कि 60 वर्ष या इससे ज्यादा की उम्र के 6.6 फीसदी बुजुर्ग कोविड-19 के संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार थे। लेकिन महिलाओं की तुलना में पुरुषों में संक्रमण का जोखिम अधिक था।