विशेषज्ञ बताते हैं कि स्थिति ऐसी है कि यहां लोगों को कैंसर जैसे गंभीर रोग की शुरुआत में पहचान नहीं होने से समय पर इलाज नहीं हो पाता है। उनका मानना है कि अगर निजी क्षेत्र में इलाज सस्ता हो, तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिल पाएगी।
फोर्टिस अस्पताल में लैप्रोस्कॉपिक, जीआई विभाग के निदेशक डॉ. प्रदीप जैन ने विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर कहा कि भारत में करीब एक करोड़ लोग कैंसर रोग के कारण भारी कर्ज तले दबकर घोर गरीबी का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोई टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल जाकर देख सकता है कि किस तरह कैंसर से पीडि़त मरीज के रिश्तेदार वहां पगडंडियों पर डेरा जमाए रहते हैं, क्योंकि उनके पास उतने पैसे नहीं हैं कि वे अपने मरीज को लेकर कहीं किराए के घर में ठहर सकते हैं। वहां पहुंचने वाले ज्यादातर मरीज दूर-दराज के इलाके से आते हैं क्योंकि वहां इस बीमारी के इलाज की सुविधा नहीं है।
उन्होंने कहा, “अधिकांश मरीज व उनके तीमारदार अपनी सारी जायदाद बेचकर इलाज में खर्च कर देते हैं। कैंसर के इलाज में लोग साहूकारों, मित्रों और रिश्तेदारों से भारी कर्ज ले लेते हैं”
उन्होंने कहा, “जिस देश में प्रति व्यक्ति आय 42,000 रुपए सालाना है, वहां अधिकांश परिवारों के लिए कैंसर मरीज का इलाज कराना मुश्किल है। सरकार की ओर से कैंसर के इलाज के लिए की गई व्यवस्था जरूरत के हिसाब से कम है।”
जैन ने आगे कहा कि आज जरूरत है कि निजी क्षेत्र में कैंसर का इलाज सस्ता हो ताकि लोगों को वहां बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिले और यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज से यह संभव होगा। उन्होंने कहा कि इससे उन लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा जो अक्सर बीमार पडऩे पर भी चिकित्सकों से सलाह लेने में कतराते हैं। लोग नियमित स्वास्थ्य जांच करवाएंगे और समय से पहले रोग की पहचान होने पर इलाज संभव होगा।