scriptक्या न्यूयॉर्क-स्टॉकहोम से भी ज्यादा है मुम्बई की झुग्गी-झोपडिय़ों में हर्ड इम्यूनिटी | Herd immunity may be developing in Mumbai's poorest areas | Patrika News

क्या न्यूयॉर्क-स्टॉकहोम से भी ज्यादा है मुम्बई की झुग्गी-झोपडिय़ों में हर्ड इम्यूनिटी

locationजयपुरPublished: Aug 05, 2020 07:42:17 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

क्या मुम्बई की झुग्गी-झोपडिय़ों में हर्ड इम्यूनिटी से बच रही है लोगों की जान? मुम्बई की धारावी झुग्गी-झोपड़ी में तीन महीने पहले कोरोना जिस तेजी से पांव पसारे थे उतनी ही तेजी से अब वहां इसका प्रकोप कम होता नजर आ रहा है। स्वास्थ्य महकमे का कहना है कि धारावी में प्रत्येक 10 में से 6 लोगों में संक्रमण के विरुद्ध एंटीबॉडीज बन रही हैं जो इस बात का सुबूत है कि यहां हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो गई है।

क्या न्यूयॉर्क-स्टॉकहोम से भी ज्यादा है मुम्बई की झुग्गी-झोपडिय़ों में हर्ड इम्यूनिटी

क्या न्यूयॉर्क-स्टॉकहोम से भी ज्यादा है मुम्बई की झुग्गी-झोपडिय़ों में हर्ड इम्यूनिटी

कोरोना संक्रमण (Covid-19) जब मुम्बई ही नहीं एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती धारावी (Dharawi Slum Area) में फैला था तो पूरे देश के हाथ-पांव फूल गए थे। इस सघन आबादी वाली झुग्गी-झोपड़ी में कोरोना के तेजी से मरीज मिलने पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकार भी चिंतित थे कि अगर यहां कम्यूनिटी ट्रांसमिशन हुआ तो मरने वालों की संख्या एक दिन में हजारों पहुंच सकती है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि अब यहांं रहने वाले प्रत्येक दस में से छह लोगों के शरीर में नोवेल कोरोनोवायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज (Anti Bodies) बन रही है। यानी यहां के रहवासी अब संक्रमण से उबर चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि अगर ऐसा है तो यह एशिया भर में ज्ञात सबसे घनी आबादी वाली बस्ती होगी जहां हर्ड इम्यूनिटी विकसित हुई है। गौरतलब है कि लगभग 520 एकड़ में फैले धारावी की कुल आबादी 10 लाख से भी ज्यादा है। हाल ही मुम्बई के तीन उपनगरों में 6936 लोगों पर हुए एक सर्जिकल सर्वेक्षण में भी सामने आया कि यहां संक्रमण में भरी गिरावट देखी जा रही है, जबकि महाराष्ट्र और मुम्बई में कोरोना संक्रमितों के नए मामले अब भी देश में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रहे हैं।
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झुग्गियों में विकसित हुई हर्ड इम्यूनिटी
भारत के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के वैज्ञानिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष जयप्रकाश मुलियाल का कहना है कि मुंबई की झुग्गियों में हर्ड इम्यूनिटी (Herd Immunity) विकसित होने लगी है। मुम्बई मेडिकल कॉलेज से सेवानिवृत्त मुलियाल का कहना है कि इन झुग्गी झोपडिय़ों में संक्रमण उस दर से नहीं फैल रहा जितना बाकी शहर या राज्य में जबकि यहां स्वास्थ्य चिकित्सा, सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) और अन्य नियमों का पालन करना आसान नहीं है। मुम्बई नगर पालिका और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के जुटाए आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि शहर के सबसे निर्धन आबादी वाली जगह होने के बावजूद अनजाने में ही यहां हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो रही है। हालांकि अब तक इस बात के बहुत कम सबूत मिले हैं कि कोरोना महामारी के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी विकसित हुई है। वहीं कुछ विशेषज्ञों ने इस बात की भी आशंका जताई है कि शरीर की कुछ इम्यून कोशिकाएं एंटीबॉडीज के बेअसर होने के बाद भी इम्यूनिटी प्रदान करती रहती हैं।
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57 फीसदी लोगों में मिली एंटीबॉडीज
सर्जिकल सर्वे के दौरान मुम्बई के उपनगरों दहिसर, चेंबूर और माटुंगा की झुग्गियों में लगभग 57 फीसदी लोगों के रक्त में एंटीबॉडी थे, जो न्यूयॉर्क शहर में एक अप्रैल के अध्ययन में 21.2 फीसदी ही पाए गए थे। ऐसे ही मईमें स्टॉकहोम की मेडिकल रिपोर्टमें भी केवल 14 फीसदी लोगों में ही एंटीबॉडीज पाए गए थे। इस तरह अमरीका के न्यूयॉर्क, स्वेडन के स्टॉकहोम की तुलना में भारत के एक राज्य की झुग्गी बस्ती के लोगों में कोरोना के खिलाफ सबसे ज्यादा हर्ड इम्यूनिटी विकसित हुई है। स्वेडन जहां हाथ मिलाने पर प्रतिबंध लगाने का कड़ा विरोध किया गया था वहां उन पड़ोसी देशों की तुलना में मृत्यु दर ज्यादा थी जहां लॉकडाउन सख्ती से लागू किया गया था। लेकिन भारत की धारावी जैसी झुग्गी बस्तियों में परिस्थितियां बिल्कुल उलट हैं। यहां की ज्यादातर आबादी युवा है और कोरोना से बचाव के लिए सख्ती से नियमों की पालना करवाई गई। यानी यहां वायरस को पूरी तरह से दबाने की कोशिश किए बिना कमजोर इम्यूनिटी की रक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया। अध्ययन के लेखकों ने बताया कि निष्कर्ष बताते हैं कि कम्यूनिटी ट्रांसमिशन इसकी एक बड़ी वजह हो सकती है।
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धारावी सबसे ज़्यादा संक्रमित जोन में

धारावी जैसी मलिन बस्तियां कोरोनोवायरस के प्रसार के लिए अनुकूल हैं। धारावीए सैन फ्रांसिस्को के बराबर और न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क के आकार जितनी बड़ी जगह में फैली है। जहां 80 लोग अक्सर एक सार्वजनिक शौचालय साझा करते हैं और आठ सदस्यों वाला परिवार एक 100 वर्ग फुट की जगह में रहता है। अप्रैल में पहली बार कोरोना विस्फोट के बाद भी हाल के हफ्तों में झुग्गी-झोपडिय़ों में संक्रमण में गिरावट दर्ज की गई है। यहां तक कि भारत में कोरोना संक्रमितों के२४ घंटों के आंकड़ अब दुनिया के सबसे तेज बढ़ते आंकड़े हैं। लेकिन संभवत: इन बस्तियों में बड़े पैमाने परकिए गए डोर-टू-डोर स्वास्थ्य जांच और तेजी से विकसित की गई आइसोलेशन सुविधाओं के कारण यहां संक्रमितों की संख्या में गिरावट देखने को मिल रही है। वहीं सीरो टेस्ट के निष्कर्ष भी इस ओर इशारा करते हैं कि यहां कोरोना संकट काफी हद तक खत्म हो सकता है क्योंकि वायरस के प्रसार को फैलने दिया गया, न कि इसलिए कि इसे रोक दिया गया था। जयप्रकाश मुलियाल का कहना है कि वायरस अपना काम करता है। वायरस आइसोलेशसन की परवाह नहीं करता न ही उसे सैनिटाइजर और जांच रोक सकती है क्योंकि इंसानों की तुलना में यह बहुत होशियार है।
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हर्ड इम्युनिटी नहीं हर्ड प्रोटेक्शन है ?
भारत के पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के निदेशक के. श्रीनाथ रेड्डी का कहना है कि यह अच्छी खबर है लेकिन अभी सर्वे के नतीजों पर पूरी तरह विश्वास हीं किया जा सकता। यह हर्ड इम्यूनिटी नहीं है बल्कि इसे हर्ड प्रोटेक्शन कहना ज्यादा उचित होगा। गोरतलब है कि अकेले धारावी में ही कोरोना संक्रमण से 253 लोगों की मौत हुई थी। महामारी विशेषज्ञों का कहना हैकि संक्रमण का कम से कम 60 फीसदी आबादी तक फैलने पर ही हर्ड इम्यूनिटी विकसित होने की संभावना होती है। मुम्बई में नए संक्रमितों के मामले बीते तीन महीनों की तुलना में इस सप्ताह घटे हैं। जुलाई में हुए एंटीबॉडी सर्वे में सामने आया कि सघन आबादी, चॉल, झुुग्गी बस्तियों और बहुत छोटे घरों में रहने वाले 16 फीसदी लोग ही इस दौरान कोरोना के संक्रमण की चपेट में आए हैं।
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