गले में तालू के नीचे दोनों तरफ पिंडनुमा संरचना टॉन्सिल होती है जो एक प्रकार के लिम्फोइड ऊतक है। ये शरीर में इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करते हैं। बाह्य संक्रमण से रक्षक की तरह काम करते हैं जो कई बार जब खुद ही बिगड़ जाते हैं तो कई बीमारियों का कारण बनते हैं।
क्या कहलाता है संक्रमण: टॉन्सिल में संक्रमण को टॉन्सिलाइटिस कहते है जिसे बोलचाल में टॉन्सिल बढ़ना कहते हैं। यह किसी भी उम्र में हो सकते हैं लेकिन बच्चों में ज्यादा होते हैं। लक्षणों में गले में दर्द, बुखार व निगलने में दिक्कत आदि। टॉन्सिल में सूजन, वहां सफेद धब्बे या परत बन सकती है। इसमें एंटीबायोटिक व दर्द निवारक दवाइयां दी जाती है।
कब जरूरी होती है सर्जरी: सर्जरी की आवश्यकता तब होती है जब संक्रमण 4-6 बार तक हो चुका होता है या काफी समय से ठीक नहीं हो रहा है। वैसे टॉन्सिल का आकार थोड़ा बढ़ने से असामान्य नहीं माना जाता है। खाने या सांस लेने में रुकावट होने लगे तो इसको गंभीर मानते हैं।
टॉन्सिल बढ़े तो… इसके कई प्रकार होते हैं। कई बार तो सूजन के बाद वहां पस बनने लगता है तो इसमें एंटी-बायोटिक व दर्द निवारक दवाओं के साथ कई बार चीरा लगाकर पस निकालने की जरूरत पड़ती है। कई बार वहां सफेद दाग होता है जिसे क्रिप्टा मेग्ना कहते हैं। यह ओरल हाइजीन ठीक न रहने से मुंह से बदबू आ सकती है। यह स्थिति घातक नहीं है। इसमें गरारे और गले की सफाई का ध्यान रखना पड़ता है।