मास्क बनाने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि के रचनाकारों का कहना है कि आइ-मास्क एन-95 श्वासयंत्र मास्क (rESPIRATOR MASK) जितनी ही सुरक्षा प्रदान करता है। यह बारीक हानिकारक कणों को शरीर में प्रवेश करने से रोकने के लिए एन 95 मास्क के फिल्टर का ही उपयोग करता है। आइमास्क एक विशेष सिलिकॉन रबर से बना है जिन्हें प्रत्येक उपयोग के बाद दोबारा उपयोग किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मुंह को कवर करने वाले डबल फिल्टर को प्रत्येक उपयोग के बाद बदला भी जा सकता है। शोधकर्ताओं ने पीपीई किट और अन्य महत्त्वपूर्एा चिकित्सा उपकरणों की कमी को देखते हुए इस तरह के दोबारा उपयोग लायक मास्क बनाने का सोचा। इसके लिए उन्होंने 3डी (3D Technique)प्रिंटर की मदद से बनाया है और नर्सों और चिकित्सकों के साथ इसकी उपयोगिता को परखा।
पीपीई उपकरणों की कमी ने डॉक्टरों को दूषित चिकित्सा उपकरणों का दोबारा उपयोग करने के लिए मजबूर किया। इसलिए चिकित्सकों ने एन-95 मास्क ही पहनना पसंद किया। लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी सह थी कि एक बार इस्तेमाल के बाद इसे दोबारा उपयोग में नहीं लिया जा सकता था। लेकिन कोरोना संक्रमितों की स्वास्थ्य देखभाल में लगे कर्मचारियों को मास्क और अन्य पीपीई किट की कमी के कारण उपयोग में लिए जा चुके उपकरणों को फिर से उपयोग करना पड़ा। एन-95 मास्क में उपयोग होने वाले फिल्टिरिंग कपड़ा बनाने वाले पीटर त्साई और ड्यूक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाइड्रोजन पेरोक्साइड का उपयोग कर मार्च में अपने स्वयं के फिल्टर टेक्नीक का तरीका विकसित किया। अब इसी नई फिल्टर तकनीक को आइमास्क में उपयोग किया गया है।
शोधकर्ताओं ने देखा कि मास्क को स्टरलाइज (Sterlize) कर दोबारा इस्तेमाल करनें के एक या दो ही तरीके हैं। ऐसे में उन्होंने आइमास्क पर हर संभव तरीका अपनाया। उन्होंने ऑटोक्लेव, स्टीम स्टेरलाइजऱ, ओवन में रखना, ब्लीच और आइसोप्रोपिल अल्कोहल में भिगोना जैसे तरीकों को शामिल किया। प्रत्येक परीक्षण के बाद सिलिकॉन सामग्री फिर से इस्तेमाल करने लायक थी और संक्रमण का खतरा भी नहीं था। ड्यूक शोधकर्ताओं की टीम के बायोकेन्टोमीनेशन विधि को पूरा होने में घंटों लगते हैं जबकि इन तरीकों से इन्हें कुछ मिनटोंमें ही दोबारा उपयोग के लिए तैयार किया जा सकता है। इस तरह से आइमास्क को बार-बार स्टरलाइज कर कम से कम 20 बार तक उपयोग किया जा सकता है।