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स्वास्थ्य

प्रधानमंत्री ने उठाया सुरक्षित मातृत्व का बीड़ा! क्या आप भी देंगे अपना योगदान?

केंद्र की मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर एक योजना की
शुरुआत की है जिससे कि देश में प्रसव के दौरान होने वाली प्रसूति मौतों की
दर को कम या ख़त्म किया जा सके..

Dec 09, 2016 / 12:34 pm

राहुल

Prime Minister initiated Surakshit Matritva Abhiya

Prime Minister initiated Surakshit Matritva Abhiyan for pregnant women. Are you ready to support & contribute

हम अक्सर देश में विकास की बातों को सुनते आये हैं, लेकिन गौर करने योग्य बात ये है कि भारत में विकास की बात आधारहीन होती है। बिना किसी प्रमाण और परिस्थिति का वि‍श्‍लेषण कि‍ए बगैर बात कह दी जाती है। बीते 69 वर्षों की बात तो फिलहाल छोड़ दीजिए। वर्ष 1991 से देश के आर्थिक विकास, सामाजिक बदलाव और समावेशी विकास को लागू करने की जबर्दस्‍त कोशिशें हुईं और इस दौरान जनमानस को एक चमकते भारत की तस्वीर दिखाई गई। हालांकि‍ जिस समावेशी विकास की बात की जा रही है, उसका खाका किस आधार पर तैयार कि‍या गया?

लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर एक योजना की शुरुआत की है जिससे कि देश में प्रसव के दौरान होने वाली प्रसूति मौतों की दर को कम या ख़त्म किया जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सराहनीय कदम उठाते हुए एक योजना का निर्धारण किया है और इससे निपटने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाये है, जिसके बारे में भी हम आगे आपको बताएँगे। साथ ही यह भी अपील की गई है कि लोग आगे आकर इस अभियान में भागीदार भागीदार बनें।
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भारत में प्रसव के दौरान होने वाली मौतों का आंकड़ा हमारे दिलों के सुकून पर भारी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में जन्म देते समय प्रति 100,000 महिलाओं में से 301 महिलाएं मौंत के मुंह में चली जाती हैं और अगर बात प्रतिवर्ष की करी जाए तो भारत में हर साल करीब 45,000 महिलाएं प्रसव के दौरान अपनी जान गंवा रही हैं।

सुरक्षित मातृत्व अभियान, भारत सरकार की एक पहल-

केंद्रीय सरकार ने हमारे देश की गर्भवती महिलाओं के लिए एक योजना की शरुआत की है. जिसका नाम प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान रखा गया है। अभियान के तहत सरकार द्वारा डॉक्टर्स की टीम घर घर जा कर गर्भवती महिलाओ की हर महीने की 9 तारीख को उनकी जाँच करेगी और जरुरत पड़ी तो प्रसूताओं को पास के अस्पताल में उनका इलाज भी कराया जाएगा।
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स्वास्थ्य मंत्री नड्डा के अनुसार इस योजना से स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत असर पड़ेगा। इस योजना के अंतर्गत 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं का इलाज कराया जायेगा। इस योजना से उन महिलाओ को बहुत लाभ होगा जो पैसों की कमी के कारण अपना इलाज़ नहीं करा पाती। उनके लिए ये योजना बहुत ही फायदे मंद है।

यह अभियान के अंतर्गत हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलायो का मुफ्त इलाज़ और मार्भवती महिलाओ को अच्छे तरीके से प्रसवपूर्ण इलाज उपलब्ध कराया जाएगा। इसमें गर्भवती महिला दूसरे या तीसरे महीने में सरकारी स्वास्थ्य केंद्र जाकर अपनी स्त्री स्वास्थ्य विशेषज्ञओ से अपने प्रसव से जुडी अभी जाँच करा सकती है।

आप कैसे निभा सकते हैं सरकार की पहल में भागीदारी-
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प्रसव के दौरान होने वाली अधिकांश जटिलताओं के विषय में पहले से ही कुछ कहा नहीं जा सकता है। अतः प्रत्येक गर्भावस्था में किसी भी संभावित आपात स्थिति के लिए तैयारी की आवश्यकता होती है। जैसे कि व्यक्तिगत साफ-सफाई, प्रसव पूर्व तथा जटिलता के लिए तैयारी, रक्तदान के लिए तैयारी, खान-पान और विश्राम, मानसिक मज़बूती। भारत में जच्चा मृत्यु की वजह सरकारी और विभागीय लापरवाही के साथ साथ सामाजिक विलंबता भी है।

सामाजिक कारण-
विवाह और गर्भधारण जल्दी होना, बार-बार बच्चा होना, बेटों को प्राथमिकता देना, रक्त की कमी खतरों के संकेत और लक्षणों की जानकारी की कमी, विशेषज्ञों के पास भेजने में विलंब।

मातृ-शिशु मृत्युदर में अभी अपेक्षाकृत कमी नहीं-

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से जारी एक सर्वे रिपोर्ट की मानें तो विगत 15 वर्षों में शिशु मृत्युदर में 55 प्रतिशत कमी तो आई है. लेकिन ये विश्व के अन्य देशों के अपेक्षाकृत यह कमी प्रभावी नहीं है। विश्व के देशों की यह स्थिति है कि भारत छोटे देशों नेपाल,बांग्लादेश से भी पीछे है। जहां 68 से 70 प्रतिशत शिशु मृत्युदर की कमी आई है, जबकि भारत में अभी इसका आंकड़ा 47 पर टिका है। भारत में शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। बच्चों की सबसे ज्यादा मौतें डायरिया, मलेरिया, खसरा, निमोनिया, श्‍वास संक्रमण के कारण होती हैं। क्या सरकार को यह पक्‍का मालूम है कि बच्चों के स्वास्थ्य की चुनौतियां कौन सी हैं? देश में चिकित्सकों के लगभग 60 फीसदी पद खाली हैं।
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मौत का यह भी एक कारण-
अस्पतालों में प्रसव के केस बढऩे से दिक्कतें भी कम नहीं है। अस्पताल के प्रसूता वार्ड में बेड संख्या 60-65 और स्टाफ नर्स व आया की संख्या कम है। आंकड़ों के मुताबिक 24 घंटे में औसतन 25-30 डिलेवरी कराई जा रही हैं.। नाम न छापने की शर्त पर कुछ एक महिला चिकित्सक ने बताया कि अस्पताल में वैसे ही महिला चिकित्सकों की कमी है। ऐसे में प्रसव केस बढऩे से एक चिकित्सक को एक दिन में 35 से 40 प्रसव कराने पड़ जाते हैं। मौत के बढ़ रहे आंकड़ों का यह भी एक प्रमुख कारण है।

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