ये भी हैं कारण : आनुवांशिकता को भी इसका मुख्य कारण माना जाता है। यदि माता-पिता में से किसी एक को यह समस्या है तो बच्चे में इसका खतरा 15 प्रतिशत बढ़ जाता है। माता-पिता दोनों को ऐसी परेशानी है तो बच्चे में इसकी आशंका ६० प्रतिशत तक होती है। इसके अलावा दो अलग किस्म का भोजन जैसे दूध के साथ खट्टी व नमकीन चीजें खाने, त्वचा कटने, चोट लगकर घाव होने या जलने, एलर्जी वाली दवाओं के नियमित इस्तेमाल, धूम्रपान व शराब की लत और अधिक तनाव से भी यह समस्या हो सकती है।
लक्षण: त्वचा पर सफेद परत, खुजली, जलन, फोड़े-फुंसी, फफोले, त्वचा में दर्द और सूजन, रूखे धब्बे व धब्बों से खून आना आदि।
आयुर्वेदिक उपचार: केले के ताजे पत्ते को प्रभावित स्थान पर आधे घंटे के लिए रखें।
आधा चम्मच तिल के दाने लेकर एक गिलास पानी में रातभर भिगों दें। सुबह खाली पेट छानकर पानी पिएं।
सुबह खाली पेट करेले का 1-2 कप रस पिएं। यदि इसे पचाने में कोई परेशानी हो तो इसमें एक बड़ी चम्मच बराबर नींबू रस भी मिला सकते हैं। कड़वापन भी कम होगा।
ध्यान रहे : दो अलग प्रकृति का भोजन एकसाथ करने से बचें। लंबी यात्रा, व्यायाम या कोई शारीरिक गतिविधि के बाद तुरंत ठंडे पानी से स्नान न करें। उल्टी, यूरिन आदि को ज्यादा देर न रोकें। खट्टी, तली-भुनी व अपच पैदा करने वाली चीजें न खाएं।