गर्भ धारण के बाद बच्चे का संपूर्ण विकास महिला के शरीर के भीतर होता है। ऐसे में वजऩ कम करने और क्षमता बढ़ाने के लिए महिलाओं को अधिक ऊर्जा और ताकत की आवश्यकता होती है। गर्भवती महिलाओं के अनुकूल योगाभ्यास से महिलाओं के कूल्हों, पीठ, बाहों और कंधों को मजबूत होते हैं जो उन्हें प्रसव के दौरान होने वाली पीड़ा को सहन करने में सक्षम बनाते हैं। वैज्ञानिक कहते हें कि प्रसव के दौरान होने वाली पीड़ा शरीर की 22 हड्डियों के टूटने जितना होता है।
जैसे-जैसे गर्भावस्था का समय बगढ़ता जाता है वैसे-वैसे गर्भ में पल रहे बच्चे का वजन और आकार भी बढ़ता जाता है। ऐसे में शरीर को साधना और चलते, उठते या खड़े रहने के दौरान संतुलन बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। भावनात्मक रूप से महिलाएं प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजेन हार्मोन में वृद्धि के कारण भी परेशान रहते हैं। जैसे-जैसे महिलाएं प्रत्येक योग मुद्रा के माध्यम से सांस रोकने और सांस लेने पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करती हैं, योग शारीरिक संतुलन को सुदृढ़ करने में सक्षम बनाता हैं।
गर्भ मेंभू्रण के विकसित होने पर गर्भवती महिलाओं के शरीर में कुछ विशिष्ट मांसपेशी समूहों पर अधिक तनाव पड़ता है। पेट के बढ़ते आकार के कारण महिलाओं के पास अधिक लॉर्डोटिक होती है। बच्चे के वजन के अतिरिक्त दबाव के कारण महिलाओं के कूल्हे की हड्डियों में तनाव उत्पन्न होने लगता है। महिलाओं के स्तनों का आकार बढऩे पर उनके शरीर के ऊपरी हिस्से और छाती के अलावा, गर्दन और कंधों पर भी तनाव बढ़ता है जिसके चलते हाथ-पांव में अकडऩ और दर्द रहता है। योग इन सभी समस्याओं से राहत देता है।
योग की विभिन्न मुद्राएं सांस लेने और छोडऩे के अभ्यास एवं योग के माध्यम से, नर्वस सिस्टम रिलैक्स मोड में चला जाता है। जब शरीर विश्राम मुद्रा में होता हैं, तो पाचन ठीक से काम करता हैं, हम बेहतर नींद लेते हैं और हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली उच्च स्तर पर होती है।
योग करने से शरीर के जोड़ों के भीतर रक्त सर्कुलेशन बढ़ जाता है और योग अभ्यास के दौरान हमारी मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है। हमारे शरीर के भीतर रक्त के संचलन से सूजन कम हो जाती है और हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। जिससे एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।