पालुराम और झज्जर जिले के गांव नौगांव के सिपाही हरि सिंह 1944 में इटली में शहीद हुए थे, लेकिन उनके पार्थिव शरीर नहीं मिले थे। दोनों को 13 सितंबर, 1944 को गुमशुदा घोषित कर दिया गया था। इसके बाद 1996 में इटली में मानव कंकाल के अवशेष मिले और डीएनए जांच के बाद 2012 में खुलासा हुआ कि ये कंकाल करीब 20 से 22 वर्ष के युवकों के हैं,जो यूरोपीय नस्ल से मेल नहीं खाते। बाद में कॉमनवेल्थ ग्रेव कमिशन से मिले डाटा के आधार पर पता चला कि ये कंकाल ब्रिटिश इंडियन आर्मी की फ्रंटियर फोर्स राइफल के 2 सिपाहियों के हैं। इटली सरकार ने पिछले साल अक्तूबर में उनकी शहादत की पुष्टि की थी। इसके बाद दोनों का संस्कार इटली में ही कर दिया गया और अब उनकी मिट्टी भारत लाई जा रही है।
घर वाले मान बैठे थे यह बात
वहीं,बहुत दिनों तक दोनों जवानों का कोई पता न मिलने के कारण परिवार वालों ने मान लिया थाा कि या तो वे मारे जा चुके हैं या कहीं विदेश में बस गए हैं। दोनों के बारे में जानकारी भी न मिलती यदि इटली के फ्लोरेंस के समीप पोगियो अल्टो में 1996 में मानव हड्डियां न पाई जातीं। दोनों 13वें फ्रंटियर राइफल्स की चौथे बटालियन के जवान थे। उनको जर्मन इंफेंट्री डिविजन के खिलाफ 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध में पोगियो अल्टो की लड़ाई में लगाया गया था। गत वर्ष लंबे अंतराल के बाद भारतीय सेना के अधिकािरयों ने उनके घर पहुंचकर बताया था कि हरिसिंह और पलू राम मित्र राष्ट्रों की तरफ से जर्मनी के खिलाफ लड़ते हुए इटली में शहीद हुए थे। जिस कब्रिस्तान में वे दफनाए गए थे, वहीं की मिट्टी उनके परिवार वालों को इटली सरकार ने जल्द सौंपने को कहा था।
हरिसिंह को मिला था वार मेडल
रोहतक का नौगांवा गांव अब झज्जर जिले में आता है। जब हरिसिंह की शहादत के बारे में पता चला था तो वहां रहने वाले उदय सिंह के बेटे रणबीर सिंह ने बताया था कि उनके पिता सेना में थे। उन्होंने बताया था कि छोटे भाई हरिसिंह भी सेना में थे,लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उनका पता नहीं चला। बाद में चाचा को वार मेडल तो मिला, लेकिन उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। हरिसिंह के नाम वाला यह मेडल आज भी उनके पास घर में मौजूद है, लेकिन उसके चाचा हरिसिंह गायब हुए या शहीद हुए, इसका कोई प्रमाण नहीं था। अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि इटली में जहां हरिसिंह को कब्र में दफनाया गया है, वहां की मिट्टी उन्हें सौंपी जाएगी। रणबीर सिंह ने कहा कि उन्हें गर्व है कि चाचा गायब नहीं हुए थे बल्कि जर्मन सेना से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। गांव के ही एक अन्य फौजी 87 वर्षीय होशियार सिंह ने तब टीम को बताया कि हरिसिंह उनसे पांच-छह साल बड़े थे। सेना में भर्ती होने के बाद केवल एक बार घर आए थे, इसके बाद वापस नहीं लौटे।
अक्सर परिवार में होती थी चर्चा
जब गत वर्ष शहादत का पता चला था तो हिसार के गांव नगथला निवासी रामजी लाल ने बताया था कि पलूराम उनके दादा के सगे भाई थे। उनके दादा पलू राम 19 साल की उम्र में सेना में भर्ती हो गए थे। वह अविवाहित थे और द्वितीय विश्व युद्ध में गायब हो गए थे। जब हिसार कैंट से सेना के अधिकारियों ने घर आकर बताया कि पलू राम के अवशेष इटली के कब्रिस्तान में मिले हैं, जिनकी जांच के बाद पता चला कि पलू राम शहीद हो गए थे। रामजी लाल के बेटों रमेश (जो पलू राम के पौत्र हैं) ने बताया कि दादा के बारे में अक्सर परिवार में चर्चा होती थी, हम मानते भी थे कि युद्ध में वह शहीद हो गए होंगे,लेकिन पुष्टि नहीं हो पाती थी।