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ईरानी फिल्मकार रसूलोफ को एक साल की कैद

सिनेमा, सिस्टम और सजा

मुंबईMar 07, 2020 / 09:09 pm

पवन राणा

ईरानी फिल्मकार रसूलोफ को एक साल की कैद

ईरानी फिल्मकार रसूलोफ को एक साल की कैद

-दिनेश ठाकुर

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखने वाले ईरान के फिल्मकार मोहम्मद रसूलोफ को यह कहते हुए एक साल की कैद की सजा सुनाई गई है कि उनकी फिल्में ‘सिस्टम के खिलाफ प्रचार’ करती हैं। पिछले महीने बर्लिन फिल्म समारोह में रसूलोफ की फिल्म ‘देअर इज नो ईवल’ को गोल्डन बीयर अवॉर्ड से नवाजा गया था, लेकिन विदेश यात्रा की इजाजत नहीं होने से वह समारोह में शिरकत नहीं कर सके। उन्हें 2011 में भी एक साल जेल में रखा गया था।

 

ईरानी फिल्मकार रसूलोफ को एक साल की कैद

कुछ साल पहले ईरान का जो उदारवादी चेहरा उभरा था, वह कट्टरपंथ के बढ़ते दबदबे से धूमिल होता नजर आ रहा है। वहां हाल के चुनाव में 290 में से 230 सीटों पर कट्टरपंथियों की जीत से तस्वीर और साफ हो जाती है। रसूलोफ की तरह ईरान के दूसरे उदारवादी फिल्मकार भी हुक्मरानों के दमन का शिकार होते रहे हैं। कई और देश हैं, जहां सत्ता और सियासत फिल्म वालों को ‘आड़ा-तिरछा’ होने की इजाजत नहीं देती। चीन की कम्युनिस्ट सरकार के कोप से बचने के लिए वहां के ही नहीं, हॉलीवुड तक के फिल्मकार एहतियात बरतते हैं। चीन में ऐसी किसी फिल्म को प्रदर्शन की इजाजत नहीं मिलती, जिसमें उसकी आलोचना की गई हो।

ईरानी फिल्मकार रसूलोफ को एक साल की कैद

अभिव्यक्ति की आजादी के मामले में भारतीय फिल्मकार काफी हद तक सरकारी दखल से मुक्त हैं। सरकार की आलोचना के बावजूद उनकी फिल्मों पर ज्यादा आंच नहीं आती। हां, इमरजेंसी (25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977) के दौरान जरूर कई कलाकारों को तल्ख तजुर्बों से गुजरना पड़ा। उन ढाई साल के दौरान भारतीय सिनेमा ने जाना कि सत्ता और सियासत दमन पर उतर आएं तो मनोरंजन का खेल किस हद तक बिगड़ सकता है।

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इमरजेंसी के दौरान अमृत नाहटा की फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ और कन्नड़ अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी ने दमन की इंतिहा झेली। इससे पहले कि ‘किस्सा कुर्सी का’ (शबाना आजमी, रेहाना सुलतान) सिनेमाघरों में पहुंचती, इसके प्रिंट जब्त कर लिए गए और बाद में इन्हें आग के हवाले कर दिया गया। राजनीति की विद्रुपताओं पर व्यंग करने वाली इस फिल्म का अब कोई निशान बाकी नहीं है। अमृत नाहटा ने इसी नाम से बाद में दूसरी फिल्म बनाई, जो ज्यादा नहीं चली। इमरजेंसी के दौरान संजीव कुमार और सुचित्रा सेन की ‘आंधी’ पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था, क्योंकि सरकारी नुमाइंदों को लगा था कि यह फिल्म तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर आधारित है।

नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली कन्नड़ फिल्म ‘संस्कार’ (1970) की अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी इमरजेंसी का खुलकर विरोध कर रही थीं। उन्हें बहुचर्चित बड़ौदा डाइनामाइट मामले में गिरफ्तार कर आठ महीने जेल में रखा गया। रिहाई के पांच दिन बाद उनकी मौत हो गई। इमरजेंसी के दौरान दूरदर्शन और आकाशवाणी पर किशोर कुमार के गानों का प्रसारण सिर्फ इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि उन्होंने मुम्बई में कांग्रेस की रैली में कार्यक्रम पेश करने से इनकार कर दिया था। इमरजेंसी हटने के बाद यह रोक हटी।

इमरजेंसी का विरोध करने पर देव आनंद, शत्रुघ्न सिन्हा और मनोज कुमार की फिल्में लम्बे समय तक दूरदर्शन पर नहीं दिखाई गईं। ‘भारत कुमार’ के तौर पर मशहूर रहे मनोज कुमार से तत्कालीन सरकार इमरजेंसी के समर्थन में डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनवाना चाहती थी। इसकी पटकथा अमृता प्रीतम से लिखवाई जा रही थी। मनोज कुमार के इनकार के बाद अमृता प्रीतम ने भी कदम पीछे खींच लिए। इमरजेंसी के काले दिन फिल्म वालों में आज भी सिहरन जरूर पैदा करते होंगे।

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