ग्रामीण और विजय के परिवार को गर्व है। कारगिल दिवस पर पिछले 19 सालों से बूढ़ी माँ की आंखें नम रहती हैं। लेकिन गर्व भी होता है। विजयशंकर के बड़े भाई प्रमोद दुबे ने बताया कि विजय बहुत ही चंचल सभी का लाड़ला, प्यारा बेटा और भाई था। शुरू से ही देश प्रेम की भावना और फौज में भर्ती होने का जूनून था। अपनी पढ़ाई के साथ साथ वे फौज में भर्ती होने की तैयारी भी कर रहे थे। 1994 में भर्ती होने के बाद तैनाती 57 रेजीमेंट तोपची जवान की पोस्ट में हुई। दो साल नौकरी करने के बाद 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए। परिवार को बेटा खाने का दर्द तो है, लेकिन गर्व से छाती चौड़ी हो जाती है।
विजयश्ंाकर दुबे के भाई प्रमोद दुबे ने बताया कि गांव में शहीद की स्मारिका बनाई गई है। आज भी गांव के लोग हर दिन यहां श्रृद्धासुमन अर्पित करते हैं, वृक्षारोपण होता है, बच्चे खेलकूद करते हैं।
विजय द्वार बनेगा
ग्रामीणवासियों का कहना है कि यहां पक्की दीवार बनाकर उसमें विजय द्वार बनवाया जाए। समाधि पर सुबह-शाम परिवार और गांव के लोग दीपक जलाकर श्रद्धांजलि देते हैं। भाई का कहना है कि विजय गांव के युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
प्रशासन हर साल करता है सम्मान
प्रशासन की तरफ से माता-पिता व भाई-बहन को हर साल सम्मान दिया जाता है। १५ अगस्त, २६ जनवरी व अन्य दिनों परिवार को स्कूलों में सह सम्मान बुलाया जाता है।