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होशंगाबाद

उज्जैन के महाकाल की तर्ज पर नर्मदापुरम में पालकी पर सवार होकर निकलेंगे काले महादेव

चांदी की झाडू़ से होगी मार्ग की सफाई

होशंगाबादFeb 20, 2020 / 09:12 pm

sandeep nayak

उज्जैन के महाकाल की तर्ज पर नर्मदापुरम में पालकी पर सवार होकर निकलेंगे काले महादेव

उज्जैन के महाकाल की तर्ज पर नर्मदापुरम में पालकी पर सवार होकर निकलेंगे काले महादेव

होशंगाबाद/ नर्मदापुरम् में शुक्रवार को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी। सेठानीघाट स्थित काले महादेव मंदिर में सुबह से अभिषेक किया जाएगा। महाशिवरात्रि महोत्सव का यह आयोजन पूरे शहर में आकर्षण का केंद्र रहता है। इस बार पूरा महोत्सव उज्जैन की तर्ज पर मनाया जा रहा है। नर्मदापुरम् में सेठानीघाट स्थित कालेमहादेव मंदिर से भगवान की शाही सवारी निकाली जाएगी। पहली बार उज्जैन की तर्ज पर सवारी निकाली जा रही है। शाही सवारी में मनमहेश हाथी और चंद्रमौलेश्वर पालकी में छवीना शृंगार स्वरूप धारण कर विराजमान होंगे। नंदी पर सवार इच्छामहेश, शेषनाग और गरुड़ महाराज के रूवरूप में शामिल बाबा भी सभी के आकर्षण का केंद्र रहेंगे। बाबा की पालकी पर लगने वाले कसीदाकारीयुक्त मखमल के खाते को खासतौर पर मथुरा से मंगाया गया है।

चांदी का झाडू से साफ होगा मार्ग
शाही सवारी के दौरान रास्ते में चांदी की झाडू से मार्ग की सफाई की जाएगी। समिति के सदस्यों ने भगवान भोलेनाथ की शोभायात्रा की तैयारियां पूर्ण कर ली हैं। सवारी में स्वच्छता का भी संदेश दिया जाएगा। साथ ही प्रदूषण न फैले इसलिए आतिशबाजी नहीं के बराबर होगी।
यहां से गुजरेगी सवारी
सवारी सेंट्रल बैंक, सराफा चौक, मोर छली चौक, सातरस्ता, जय स्तंभ चौक से वापस सराफा चौक, सेठानी घाट पहुंचेगी। जहां बाबा का पूजन अर्चन किया जाएगा। इसके बाद सवारी का रात १० बजे काले महादेव पहुंचेगी।

पचमढ़ी : 42 सौ फीट ऊचाई पर कांधों पर त्रिशूल लेकर पहुंच रहे श्रृद्धालु
हिल स्टेशन पचमढ़ी में इन दिनों भोलनाथ के जयकारे गूंज रहे हैं। इन दिनों यहां मेला चल रहा है। शिवरात्रि के दौरान यहां बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। चौरागढ़ स्थित मंदिर में भक्त लोहे के त्रिशूल लेकर अपनी मन्नत मांगने के लिए पहुंचते हैं। 42 सौ फीट ऊंचाई पर बन चौरागढ़ मंदिर का अनोखा इतिहास है। महाशिवरात्रि मेले में आने वाले श्रृद्धालु मन्नत पूरी होने की आस में वजनी त्रिशूल लेकर पहुंचते हैं। मान्यता है कि चौरा बाबा ने वर्षों पहाड़ी पर तपस्या की थी। जिसके बाद भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि बाबा के नाम से यहां भोले जाने जाएंगे। तभी से पहाड़ी की चोटी का नाम बाबा के नाम पर चौरागढ़ रखा गया। इस दौरान भोलेनाथ अपना त्रिशूल चौरागढ़ में छोड़ गए थे। भक्तों ने भोलेशंकर को एक दो इंच के त्रिशूल अर्पित कर यह परंपरा शुरू की थी।

सौ साल पुराना है मेले का इतिहास
महाशिवरात्रि मेले का इतिहास सौ साल पुराना है मंदिर का इतिहास और भी प्राचीन है। किवदंती है कि माता पार्वती ने महाराष्ट्र में एक बार मैना गौंडनी का रूप धारण किया था। इस वजह से महाराष्ट्र के वाशिंदे माता को बहन और भोले शंकर को बहनोई और भगवान गणेश को भांजा मानते है। दूसरी किवदंती यह भी है कि भस्मासुर से बचने भोले शंकर ने चौरागढ़ की पहाडिय़ों में शरण ली थी।

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