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होशंगाबाद

दस दिन में 76 किलोमीटर का सफर तय नहीं कर पाया आदेश, अब भी भारी बैग ढो रहे बच्चे

उप सचिव ने दस दिन पूर्व जारी किया था आदेश, 2018 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी जारी किया था आदेश
 

होशंगाबादJul 14, 2019 / 11:48 am

poonam soni

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दस दिन में 76 किलोमीटर का सफर तय नहीं कर पाया आदेश, अब भी भारी बैग ढो रहे बच्चे

होशंगाबाद. राजधानी से दस दिन पहले चला एक सरकारी आदेश अब तक होशंगाबाद नहीं पहुंच पाया है। वह भी तब जब सरकार खुद को हाईटैक बताते हुए हर काम ऑनलाइन का दावा करते नहीं थक रही है। जबकि सड़क मार्ग से भी 76 किलोमीटर की दूरी दो घंटे में तय की जा सकती है। लेकिन आदेश नहीं मिलने का बहाना बनाकर जिला शिक्षा विभाग बच्चों का बोझ कम करने की दिशा में काम नहीं कर रहा है। न ही स्कूलों ने अब तक इस दिशा में कोई कदम उठाया है। मासूम बच्चे अब भी पांच से छह किलो वजनी बस्ते कंधे पर टांगकर स्कूल जाने को मजबूर हैं।
यह दिशा निर्देश किए थे जारी
ज्ञात रहे कि सुप्रीम कोर्ट और बाल अधिकार संरक्षण आयोग के निर्देश पर केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2018 स्कूली बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। इस पर 3 जुलाई 2019 को मध्यप्रदेश सरकार के उप सचिव प्रमोद कुमार सिंह ने सभी जिलों को आदेश जारी किए हैं। जिसमें कक्षा एक से लेकर 10वीं तक बस्ते का वजन तय कर दिया है। लेकिन न तो अधिकारियों ने इन आदेश को गंभीरता से लिया और न ही निजी स्कूलों ने आदेश को कोई तबज्जो दी। यही कारण है कि बच्चे अब भी 6 से 9 किलो वजनी स्कूल बैग ढो रहे हैं। जिला शिक्षा विभाग को कहना है कि अभी तक उसे एेसा कोई आदेश ही नहीं मिला है।
यह है हकीकत
शहर के विभिन्न स्कूलों के बच्चों का बैग का वजन कराया तो यह स्थिति सामने आई।
दूसरी क्लास बच्चे का वजन 29 बैग का वजन 05 किलो
दूसरी क्लास बच्चे का वजन 20 बैग का वजन 5.1 किलो
चौथी क्लास बच्चे का वजन 23 किलो बैग का वजन 6.6
सरकारी गाइड लाइन
कक्षा अधिकतम भार
कक्षा एक से दो 1.5 किलोग्राम
कक्षा 3 से 5.2 से 3 किलोग्राम
कक्षा छह से सात 04 किलोग्राम
कक्षा आठ से नौ 4.5 किलोग्राम
कक्षा 10 से 05 किलोग्राम

जिम्मेदार बेफिक्र, बच्चे परेशान
पत्रिका टीम ने शनिवार को स्कूलों का निरीक्षण किया। तो हालात बद से बदतर निकले। बच्चे छह से लेकर नौ किलो वजनी बस्ता कंधे पर लादकर स्कूल आ रहे हैं। जबकि कक्षा एक और दो के बच्चों को होमवर्क नहीं देने के आदेश हैं। इसके और कक्षा एक से १०वीं तक बैग का वजन तय होने के संबंध में स्कूल संचालकों से पूछा तो उन्होंने जानकारी होने से ही इंकार कर दिया।
यह स्कूल बना रोल मॉडल
वहीं सदर बाजार स्थित सेंटपॉल स्कूल में चौथी क् लास तक के बच्चे बिना किताब के पहुंचते हैं। यहां स्कूल में ही बच्चों की किताबें जमा करवा ली जाती हैं। उन्हें पढ़ाई के दौरान क्लास में उपलब्ध कराई जाती हैं। पालक रामरति चौहान बताती हैं कि छह माही परीक्षा के दौरान आधी किताबें दी जाती हैं और वार्षिक परीक्षा के समय पूरी किताबें वापस कर दी जाती हैं।
निजी स्कूलों के बस्तों का वजन इतना अधिक होता है कि कई बार बच्चे बैग के वजन से असंतुलित होकर गिरकर चोटिल हो जाते हैं। सरकार को बस्तों का वजन कम करने के आदेश का कड़ाई से पालन कराना चाहिए।
निर्मल दुबे, अभिभावक
बच्चों के बैग का वजन कम होना चाहिए। जब पैरेंट्र्स को बैग उठाने में काफी दिक्कत होती है तो बच्चे कैसे पीठ पर टांगकर क्लास तक पहुंचते होंगे। स्कूल प्रबंधन को इससे कोई लेना देना नहीं है। वह सिर्फ अपना फायदा देखता है।
– संतोष विश्वकर्मा, अभिभावक
मैंने अभी आदेश नहीं देखा है, आदेश देखने के बाद भी आगे कुछ कह पाऊंगा। सरकार के आदेश का पालन सभी को करना पड़ेगा।
अनिल वैद्य, डीइओ होशंगाबाद

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