जानकारी के अनुसार साल में सिर्फ एक बार ही नागद्वारी की यात्रा और दर्शन का मौका मिलता है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र होने के कारण यहां प्रवेश वर्जित होता है। रिजर्व फॉरेस्ट प्रबंधन यहां जाने वाले रास्ते का गेट बंद कर देता है। हर साल नागपंचमी पर यहां एक मेला भरता है। जिसमें भाग लेने के लिए लोग जान जोखिम में डालकर कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचते हैं। सावन में नागपंचमी के 10 दिन पहले से ही कई राज्यों के श्रद्धालु, खासतौर से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है।
नागद्वारी के अंदर चिंतामणि की गुफा है। यह गुफा 100 फीट लंबी है। इस गुफा में नागदेव की कई मूर्तियां हैं। स्वर्ग द्वार चिंतामणि गुफा से लगभग आधा किमी की दूरी पर एक गुफा में स्थित है। स्वर्ग द्वार में भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं। मान्यता है कि जो लोग नागद्वार जाते हैं, उनकी मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। नागद्वारी की यात्रा करते समय रास्ते में आपका सामना कई जहरीले सांपों से हो सकता है, लेकिन राहत की बात है कि यह सांप भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। सुबह से श्रद्धालु नाग देवता के दर्शन के लिए निकलते हैं।
12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा पूरी कर लौटने में भक्तों को दो दिन लगते हैं। नागद्वारी मंदिर की गुफा करीब 35 फीट लंबी है। 100 साल से चालू है यात्रा नागद्वारी मंदिर की धार्मिक यात्रा को के 100 साल से ज्यादा हो गए हैं। लोग 2-2 पीढिय़ों से मंदिर में नाग देवता के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं। सबसे पहले 1959 में चौरागढ़ महादेव ट्रस्ट बना था। 1999 में महादेव मेला समिति का गठन हुआ। इस बार ये यात्रा 18 जुलाई से शुरू हुई है और 28 जुलाई तक चलेगी। जल गली से 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा में भक्तों को दो दिन लगेंगे। गुफा में विराजमान नाग देवता के दर्शन भक्त करते हैं। नागद्वार मंदिर की यात्रा श्रद्धालु सुबह ही शुरू करते हैं, ताकि शाम तक गुफा तक पहुंच जाएं। जंगल में जंगली जानवरों और अन्य जहरीले जीवों का खतरा रहता है।
यात्रा में पिछले साल करीब 4 लाख श्रद्धालु आए थे। इस बार श्रद्धालुओं का आंकड़ा बढ़ सकता है। यहां के श्रृद्धालुओं का कहना है कि यह यात्रा अमरनाथ जैसी है। बाबा अमरनाथ और नागद्वारी की यात्रा सावन मास में ही होती है। बाबा अमरनाथ की यात्रा के लिए ऊंचे हिमालयों से होकर गुजरना होता है। जबकि नागद्वारी की यात्रा सतपुड़ा की घनी व ऊंची पहाडिय़ों में सर्पाकार पगडंडियों से पूरी होती है। मान्यता है कि इस सर्पाकार पगड़डियों के दर्शन करने से कालसर्प दोष दूर होते हैं।