ऐसे करता था काम
टेलीग्राम ( Telegram ) भले ही बंद हो गया, लेकिन आज की पीढ़ी को ये जानना चाहिए कि आखिर ये था क्या और कैसे काम करता था। दरअसल, जिस तरह शहरों का टेलीफोन कोड होता है। ठीक उसी तरह टेलीग्राम करने के लिए जिलों और शहरों का भी टेलीग्राम कोड हुआ करता था। टेलीग्राम कोड 6 अक्षरों का होता था। टेलीग्राम करने के लिए प्रेषक अपना नाम, संदेश और प्राप्तकर्ता का पता आवेदन पत्र पर लिखकर देता था, जिसे टेलीग्राम मशीन पर अंकित किया जाता था और शहरों के कोड के हिसाब से प्राप्तकर्ता के पते तक भेजा जाता था। मशीन के माध्यम से संबंधित जिले या शहर के केंद्र पर एक घंटी बजती थी जिससे तार मिलने की जानकारी प्राप्त होती थी और सूचना तार के माध्यम से केंद्र पर पहुंचती थी। घंटी की सांकेतिक कोड को सुनकर कर्मचारी प्रेषक द्वारा भेजे गए संदेश को लिख लेता था। गड़बड़ी की आशंका के चलते टेलीग्राम संदेश बहुत छोटा होता था। संदेश नोट करने के बाद डाकिया उसे संबंधित व्यक्ति तक पहुंचा जाता था।
इसलिए किया गया था बंद
साल 1850 में अंग्रेजों के वक्त में कोलकाता ( Kolkata ) और डायमंड हार्बर के बीच शुरू हुई। भारतीय तार सेवा का सबसे ज्यादा उपयोग ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया। इसके बाद 11 फरवरी 1855 को इसे आम लोगों के लिए शुरू कर दिया गया। वहीं इसकी मांग बढ़ने के कारण साल 1990 में इसकी जिम्मेदारी बीएसएनएल ( bsnl ) को दे दी गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1980 में एक दिन में लगभग 6 लाख टेलीग्राम भेजे जाते थे। वहीं इस सेवा के संचालन में बीएसएनल को जहां सलाना 100 करोड़ रुपये का खर्च आ रहा था, तो वहीं आमदनी के नाम पर महज 75 लाख रुपये ही आ रहे थे। ऐसे में इस सेवा को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया।