विशेषज्ञों का कहना है कि आमतौर पर सांस की गंभीर तकलीफ वाले 40 से 50 फीसदी मरीजों की वेंटिलेटर पर मौत हो जाती है। क्योंकि वे आक्सीजन का अतिरिक्त दबाव झेल नहीं पाते हैं। न्यूयार्क के स्वास्थ अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि वेंटिलेटर पर रखे गए 80 फीसदी से ज्यादा कोरोना मरीजों की मौत हो रही है।
विशेषज्ञ इस बात से हैरान हैं कि क्या वेंटिलेटर वाकई कोरोना पीड़ितों के लिए काल बन रहे हैं। न्यूयार्क के गवर्नर एंड्रयू क्यूमो का कहना है कि निमोनिया के मरीज एक या दो दिन से ज्यादा वेंटिलेटर पर नहीं रहते। जबकि कोरोना संक्रमितों को जीवन रक्षक मशीन पर 10 से 15 दिनों तक रखना आम बात है, फिर भी उनकी जान जा रही है ये चिंता का विषय है। अमेरिका से भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं। ऐसे में डॉक्टर इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि वेंटिलेटर पर रखते ही मरीज की हालत इतनी गंभीर क्यों हो जा रही है।