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जगुआर के टैटू से मिली नई ताकत और सुधर गई जिंदगी

करीब एक दशक पहले मेरा रेप हुआ था। मुझे आश्वस्त किया गया कि मेरे ड्रिंक्स में कुछ मिलाया गया था। इसका मकसद समाज के उस ताने से बचाना था कि पीडि़ता बहुत अधिक पीती थी या घटना के वक्त उसके कपड़े अच्छे नहीं थे।

जयपुरSep 24, 2018 / 08:58 pm

manish singh

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जगुआर के टैटू से मिली नई ताकत और सुधर गई जिंदगी

पहली बार टैटू तब कराया जब मैं 18 साल की थी। ये मेरे पैरों में था। इसका कोई कारण नहीं था। बस मुझे एक टैटू कराना था। मैं अपनी मां के साथ नहीं रहती थी। मैने यह तय कर लिया था कि बहुत छोटा टैटू होगा जिसे मैं हमेशा उनसे छुपा सकती हूं। इसके बाद टैटू और मां से रिश्ता ही बदल गया। मां ने मुझे यौन उत्पीडऩ के दर्द से उबरने में मदद की।
करीब एक दशक पहले मेरा रेप हुआ था। मुझे आश्वस्त किया गया कि मेरे ड्रिंक्स में कुछ मिलाया गया था। इसका मकसद समाज के उस ताने से बचाना था कि पीडि़ता बहुत अधिक पीती थी या घटना के वक्त उसके कपड़े अच्छे नहीं थे। मैने ड्रिंक भी और जो मेरे साथ जो हुआ क्या वो सहन करने लायक है। मैं दु:खी थी। क्या कपड़े या नशे की वजह से मेरे शरीर का शोषण हुआ। मुझे ये अभी समझ नहीं आ रहा।

मुझे याद है जब कार में मेरे साथ जबरदस्ती हो रही थी। मेरा शरीर दागदार हो गया था। इसके बाद भी मैं खुद को कैसे दोषी ठहरा सकती थी। मैंने खुद को मजबूत किया। अगली सुबह मैं वीकेंड ट्रिप पर चली गई। मैने शारीरिक दर्द को नजरअंदाज किया। मेरे शरीर के साथ जिस तरह का बर्ताव हुआ उसका अहसास मेरे लिए घाव की तरह था। समाज के लोगों की बातें और ताने दर्द को बढ़ाने का काम कर रही थी। इससे ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरे जख्मों पर नमक छिडक़ रहा है। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। इस जख्म को भुला मैने जिंदगी को खुशी के साथ जीने का फैसला किया

नया टैटू बना मेरी ताकत

एक साल पहले बड़ा टैटू बनवाया। ये खतरनाक था, इसमें गुस्सा था जो जगुआर की हरी आंख की तरह मेरे शरीर पर पीछे की तरफ दिखाई देता है। मैं अपने शरीर पर दोबारा नियंत्रण कर रही थी। मैं शरीर में वो ऊर्जा भर रही थी जिससे मैं खुश रह सकूं। मेरे कंधे के पीछे जगुआर टैटू मेरा पसंदीदा है। मैं खुद को जगुआर की तरह देखती हूं और ताकतवर महसूस करती हूं। मैं जगुआर को रोज नहीं देखती। पर जब मैं शीशे में उसे देखती हूं तो खुद को सबसे अधिक सशक्त पाती हूं। इसकी गर्जना को महसूस कर खुद को सुरक्षित मानती हूं। मैं उसका सम्मान करती हूं। उसे प्यार करती हूं क्योंकि वही मेरी ताकत है।

बच्चों से खुलकर बात करें

अधिकतर महिलाओं के पास एक कहानी होती है, जब उसे कोई पुरुष बुरी नीयत से देखता है। सिल्वा एम. डुटचेविसी जो एक क्लिनकिल सोशल वर्कर हैं। वे मानती हैं कि यौन उत्पीडऩ का दुष्प्रभाव लंबे समय तक दिलो-दिमाग पर रहता है। वे कहती हैं बहुत लोगों को लगता है कि फब्तियां कसने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इसमें कोई शरीर को नहीं छूता है लेकिन ये मनोवैज्ञानिक शोषण है। पीड़ा देने का काम करता है। लड़कियां जन्म से ही इसका शिकार होती हैं। पहले अभिभावकों से फिर स्कूल में। जब लोग उन्हें ‘प्रेटी’ तुम बहुत सुंदर हो कहकर बुलाते हैं। थैरेपिस्ट एलिसन अब्राम्स ने किशोर लड़कियों को लेकर काम किया है। अब्राम्स चाहती हैं कि स्कूलों में लडक़े और लड़कियों को यौन उत्पीडऩ से जुड़ी सभी बातें बताई जाएं। अभिभावकों और शिक्षकों को बच्चों से खुलकर बात करनी होगी ताकि वे अपने साथ हुए दुव्र्यव्यवहार के बारे में बता सकें।

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