श्रमिक (Labour) का नाम दद्दन है। वह बलरामपुर के कठौवा गांव का रहने वाला है। वह रोजी-रोटी के सिलसिले में अपनी पत्नी गीता और तीन बच्चों के साथ लुधियाना में रह रहा था। इस विकट परिस्थिति में उसका रोजगार पहले ही छिन गया था। इसी बीच 26 अप्रैल को उसकी गर्भवती पत्नी की तबियत बिगड़ गई। वह उसे अस्पताल ले गया जहां उसकी मौत हो गई। डॉक्टरों ने कोरोना जांच रिपोर्ट आने तक शव देने से इनकार कर दिया। 4 दिन बाद कोरोना जांच रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद अस्पताल प्रशासन ने पत्नी का शव उसे सौंपा। आर्थिक तंगी के चलते दद्दन ने पत्नी का अंतिम संस्कार लुधियाना में ही करने का फैसला लिया, लेकिन पड़ोसियों ने कोरोना के डर से कंधा देने से मना कर दिया। मजबूरन उसे घर जाने के लिए कर्ज लेना पड़ा।
उसने किसी तरह एंबुलेंस का जुगाड़ किया और उसमें मृतक पत्नी का शव रखकर करीब 1137 किलोमीटर का सफर तय किया। वह लगभग 20 घंटे लगातार सफर के बाद अपने गांव कठौवा पहुंचा। वहां परिवार की मदद से उसने गीता का दाह संस्कार किया। बाद में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उसे और उसके बच्चों को क्वारनटीन सेंटर में भेज दिया है।