खास बात यह है कि यह एनजीओ पहले लोगों के बीच जाकर पुराने कपड़े एकत्रित करती है, फिर इन कपड़ों से सैनिटरी पैड बनाने का काम करती है। उसके बाद इन कपड़ों को गरीब आदिवासी महिलाओं के बीच वितरित किया जाता है। एनजीओ का उद्देश्य है कि गरीब आदिवासी महिलाओं को स्वस्थ जीवन उपलब्ध कराया जा सके। वहीं इस एनजीओ के संस्थापक सचिन बताते हैं कि उनकी मां को यूटरस ऑपरेशन से गुजरना पड़ा था क्योंकि उन्होंने मासिक धर्म के दौरान अपना ध्यान अच्छे से नहीं रखा था। ऐसे में वो चाहते हैं कि जो महिलाएं बाजार से सैनटरी पैड खरीदने में सक्षम नहीं हैं उनको एनजीओ के माध्यम से सैनटरी पैड उपलब्ध कराया जाए।
सोशल मीडिया में की अपील
एनजीओ के फाउंडर सचिन ने सोशल मीडिया की सहायता से लोगों से आग्रह किया है कि वे पुराने कपड़े एनजीओ को दान करें जिससे ज्यादा संख्या में सैनटरी पैड बनाए जा सकें। इसके अलावा जहां तक हो सके समाजिक लोग महिलाओं में जागरूकता फैलाने का काम भी करें। सचिन बताते हैं कि जब उन्होंने ये काम शुरू किया था तो वो अकेले थे लेकिन आज उनकी इस संस्था के वैनर तले 2000 से ज्यादा महिलाएं जागरूकता फैलाने का काम कर रहीं हैं। ये अपने आप में एक बड़ी उपलब्धी है। खास बात यह है कि यह एनजीओ गरीब महिलाओं को पुराने कपड़े से सैनटरी नैपकीन बनाना भी सिखाता है।