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होली: कहीं बरसरते अंगारे तो कहीं मारते हैं लट्ठ, यहां रंग खेलने की जगह मनाते है शोक

मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार हर जगह परअलग अलग तरीके से होली खेलने का प्रचलन है। किसी जगह पर फूलों से खेली जाती है होली ,कहीं लोग एक दूसरे पर लट्ठ बरसाते हैं।

Mar 20, 2021 / 06:28 pm

Pratibha Tripathi

holi celebrated in India

नई दिल्ली। होली का त्योहार जैसे जैसे नजदीक आते जा रहा है लोगों में इसका उत्साह उतना ही देखने को मिल रहा उतना ही है। लेकिन कोरोनाकाल के दौरान इस साल भी होली के त्यौहार को मनाने की पांबदी लगा दी गई है। होली रंगों के त्योहार है जहां लोग एक दूसरे को रंग लगाकार खुशियां बांटते है। मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार हर जगह अलग अलग तरीके से होली का त्यौहार मनाया जाता है। किसी जगह पर रंगों से होली खेली जाती है तो कहीं पर फूलों से, कहीं लोग एक दूसरे पर लट्ठ बरसाते हैं। लेकिन एक जगह ऐसी भी है जो इन सबसे हटकर होली खेलते है जहां पर रंगों से नही बल्कि आग के जलते अंगारों से होली खेली जाती है। आइए जानते हैं आखिर देश के किस हिस्से में मनाई जाती है ऐसी अजीबोगरीब होली।

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सबसे पहले बात करते हैं मध्यप्रदेश की मालवा की जहां पर भील आदिवासी के लोग रहते है इस जगह पर होली के दिन जीवनसाथी से मिलने की परंपरा है। इस दिन इस जगह पर बाजार लगता है। और बाजार में आकर लड़के-लड़कियां अपने लिए पार्टनर ढूढंते हैं। इसके बाद ये आदिवासी लड़के एक खास तरह का वाद्ययंत्र बजाते हुए डांस करते-करते अपनी मनपसंद लड़की को गुलाल लगा देते हैं। अगर उस लड़की को भी लड़का पसंद आता है तो लड़की भी गुलाल लगाकर उसका जवाब हां में दे देती है। दोनों की रजामंदी के बाद दोनों की शादी हो जाती है।

कर्नाटक के कई इलाकों में होली के दिन आग जलाई जाती है और इससे निकलने वाले अंगारों को एक-दूसरे पर फेंककर होली मनाई जाती है। यहां कि मान्यता है कि ऐसा करने से होलिका राक्षसी मर जाती है।

राजस्थान के बांसवाड़ा में रहने वाली जनजातियां होली के दिन गुलाल के साथ होलिका दहन की राख मिलाकर होली खेलते है। इतना ही नही यहां के लोग राख के अंदर दबे अंगारो पर चलते हैं। इसके अलावा यहां एक-दूसरे को पत्थर मारने रिवाज होता है। इस प्रथा के पीछे मान्यता यह है कि इस होली को खेलने से जो खून निकलता है, उससे व्यक्ति का आने वाला समय बेहतर बनता है।

राजस्थान के पुष्करणा ब्राह्मण समाज के लोग होली के दिन रंग नही खेलते बल्कि शोक मनाते हैं। इस दिन ना तो घरों में चूल्हा जलता हैं नाही कोई खास चीज आती है। बल्कि ये लोग ठीक वैसे ही शोक में डूबे रहते है जैसे घर में किसी की मौत हो गई हो। इसके पीछे एक पुरानी कहानी बताई जाती है। कहते हैं कि सालों पहले इसी जनजाति की एक महिला अपने बच्चे को गोद में लिए होलिका की परिक्रमा लगा रही थी। तभी उसका बच्चा हाथ से छुटककर आग में गिर गया। बच्चे को जलता देख महिला भी आग में कूद गई। लेकिन मरते वक्त महिला यह कह गई कि अब होली पर कभी कोई खुशी मत मनाना। तब से ये प्रथा आज भी निभाई जा रही है।

हरियाणा के कैथल जिले के दूसरपुर गांव में भी होली का त्योहार नहीं मनाया जाता। बताया जाता है स गांव को एक बाबा का श्राप मिला है। दरअसल एक संत बाबा गांव के लोगों से नाराज हो गए थे। जिसके चलते उन्होंने होलिका की आग में कूदकर जान दे दी। जलते हुए बाबा ने गांव को श्राप दिया था कि अब यहां कभी भी होली मनाई गई तो अपशगुन होगा। और इस डर से यहां के लोग अब होली का त्यौहार नही मनाते है।

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