शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि या निशिथ काल में पूजा करने से देवी लक्ष्मी (Maa Laxmi) की कृपा प्राप्त होती है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है और रात में आसमान से अमृत की वर्षा होती है। बंगाली समुदाय में इस दिन कोजगागरी लक्ष्मी की पूजा होती है। देवी के इस स्वरूप को धन—सम्पदा से युक्त माना जाता है। उनके एक हाथ में धान की बालियां होती हैं और दूसरे में वह धन से भरा हुआ मटका साथ रखती हैं। विवाहितों को देवी मां के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। इससे घर में दरिद्रता नहीं आती है।
पूर्णिमा के दिन पीतल, चांदी, तांबे या सोने से बनी देवी लक्ष्मी की प्रतिमा की स्थापना करनी चाहिए। उन्हें लाल या गुलाबी रंग के कपड़े पहनाने चाहिए। सुबह देवी की पूजा करने के बाद रात में चंद्रोदय के बाद उनकी दोबारा आराधना करनी चाहिए। इस दौरान देवी मां को खीर का भोग लगाएं एवं लाल पुष्प चए़ाएं। रात 9 बजे के बाद चांदी के बर्तन में खीर बना कर आसमान के नीचे रख दें। जबकि रात भर देवी मां के सामने घी का अखंड दीपक जलाएं। इस दौरान देवी के किसी भी सिद्ध मंत्र का जाप करें और आरती करें। अगले दिन सुबह खीर खाकर व्रत तोड़ें और दान दें।