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हुबली

जानवरों की होनी चाहिए सम्मान के साथ विदाई

जानवरों की होनी चाहिए सम्मान के साथ विदाई

हुबलीJan 15, 2021 / 10:45 am

S F Munshi

जानवरों की होनी चाहिए सम्मान के साथ विदाई

जानवरों की होनी चाहिए सम्मान के साथ विदाई

जानवरों की होनी चाहिए सम्मान के साथ विदाई
-जानवरों को नहीं मिल रहा सम्मान
हुब्बल्ली
मनुष्य एक संघी जीव है। अपने सगे संबंधियों के साथ मिल जुलकर रहना मनुष्य की ताकत और कमजोरी है। मनुष्य अपने सगे संबंधियों, मित्रों के साथ तो घुल मिलकर रहता है, साथ ही पालतू जानवरों, पंछियों को भी अपने परिवार के सदस्य का दर्जा देता है।
भले मनुष्य का लगाव पालतू जानवरों के साथ अधिक होता है परंतु जब इन प्राणियों की मृत्यु होती है तब सम्मान के साथ उनकी विदाई नहीं होती। यह विडंबना नहीं तो और क्या है? घर की रखवाली के लिए डाबरमन प्रजाति के श्वान, ब‘चों के साथ खेलने के लिए पमेरियन, अकेले में मालकिन के साथ गपशप लड़ाने के लिए तोता, मन बहलाने के लिए कबूतर, परिवार की अर्थव्यवस्था का आधार बनने के लिए घोड़े काम आते हैं। इसी प्रकार बोझा ढ़ोने के लिए गधे काम आते हैं। पालकी ढोने के लिए हाथी व आपराधिक मामलों की छानबीन में विशेष भूमिका विशेष नस्ल के श्वान अहम भूमिका निभाते हैं। इसी प्रकार कई जानवर व पंछी ऐसे हैं जिनकी मदद के बिना कुछ कार्य मनुष्य के लिए असंभव है। इन समस्त जानवरों का जीवन मनुष्य की सेवा में व्यतीत हो जाता है। मनुष्य की सेवा में समर्पित जानवर सेवा के बदले में मनुष्य से प्रेम व उपचार ही चाहता है।
जानवरों का उपयोग अपने निजी स्वार्थ के लिए करने वाला मनुष्य जानवरों को वह सम्मान नहीं देता जिसका हकदार वह है। जानवरों की लाश को इधर उधर फेंक दिए जाते हैं तभी तो हमें सडक़ों पर, मंडी में, बस्ती में जानवरों की हड्डियां कई बार मिलती है। दो-तीन दिनों के पश्चात इन पालतू जानवरों की लाश जब सडऩे लगती है। बदबू जब असहनीय हो जाती है तब अड़ोस पड़ोस के लोग निगम के कर्मचारियों को सूचना देते हैं। निगम वाले जानवरों की लाश ले जाकर शहर के बाहरी क्षेत्र या अपशिष्ट प्रसंस्करण में ही जला देते हैं। मृत्यु के पश्चात जो सम्मान जानवरों को मिलनी चाहिए वह उन्हें नहीं मिलता।
संक्रमण फैलने का डर
जानवरों की लाश सडक़ के किनारे फेंकने की वजह से कीटाणुओं की उत्पत्ति होती है इतना ही नहीं श्वान, बिल्ली, चूहे पालतू जानवरों की वजह से संक्रमण व बीमारी फैलने की आशंका रहती है। इन सभी जानवरों की तुलना में पुलिस विभाग के श्वान को नसीबवान कहना ही उचित होगा क्यों कि जब पुलिस विभाग के श्वान की मृत्यु होती है तब सरकारी सम्मान के साथ इन श्वानों का अंतिम संस्कार किया जाता है।
विद्यानगर के बसवराज पाटील को अपने पालतू बिल्ली से काफी लगाव था। आंसू बहाते हुए उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने कहा कि उन्हें उनके पालतू बिल्ली से काफी लगाव था। श्वानों के हमले में बिल्ली की जान चली गई। परिवार के सभी सदस्यों के साथ चर्चा कर बिल्ली का अंतिम संस्कार करना चाहा। स्थल के अभाव की वजह से संभव न हो सका अंतत: बिल्ली की मृत शरीर को कचरे के डिब्बे में ही डाला गया।
जानवरों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान की मांग
धरती पर जन्म लेने वाले हर एक प्राणी को एक ना एक दिन दुनिया को अलविदा कहना ही पड़ता है। जिस प्रकार जीने का अधिकार हर किसी प्राणी को है उसी प्रकार हर एक प्राणी का अंतिम संस्कार भी होना चाहिए। स्थानीय पशु प्रेमियों ने जानवरों के अंतिम संस्कार के लिए स्थल निर्धारित करने की मांग जिला प्रशासन के सम्मुख रखी।
जानवरों के लिए श्मशान
इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। बेंगलूरु महानगर पालिका की ओर से जानवरों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान का निर्माण किया गया है। पशु प्रेमी धारवाड़ के मार्टिन पुनीत ने हुब्बल्ली धारवाड़ में भी इस प्रकार के श्मशान बनाने की राय रखी। वे प्रति दिन सडक़ पर घूमने वाले 1 हजार श्वानों को चिकन खिलाते हैं।
नगर पालिका के प्रमुख अधिकारी नबीसाब खुदानवर ने जानकारी दी कि पालतू जानवरों व गली में घूमने वाले जानवरों की लाश का निपटान स्थानीय नगर पालिका वाले कर रहे हैं। फोन आते ही घटना स्थल पर पहुंचने वाले नगरपालिका के स्टाफ जानवरों के मृत शरीर को शहर से पांच किलो मीटर की दूरी पर स्थित त्याज्य निपटान स्थल पर दफनाते हैं। यदि जानवरों के पालने वाले चाहे तो उनके घर के प्रांगण में ही या ही उनके खेत में भी जेसीबी की मदद से गड्डे खोदकर जानवरों को दफनाएं जाते हैं।
जगह उपलब्ध नहीं
ग्रामीण क्षेत्र में इससे पहले भेड़, या अन्य जानवरों के मरने पर चिकित्साधिकारी के शव परीक्षण करने के पश्चात ही जानवरों का अंतिम संस्कार किया जाता था। बैल, या भैंस के मरने पर सरकार की ओर से 10 हजार रुपए सहायता धन के रूप में दिया जाता था। बीते एप्रिल से यह योजना स्थगित की गई। तब बिना शव परीक्षण के ही अब जानवरों के मालिक अपने अपने खेतों में ही जानवरों को दफना देते हैं। इनके संस्कार के लिए तालुक में कहीं भी जगह उपलब्ध नहीं है।
-डॉ. म्याडद, सहायक निदेशक पशुपालन विभाग
कुंदगोल
नगर पंचायत मुख्य अधिकारी रमेश गोंदकर ने जानकारी दी कि शहर तथा ग्रामीण क्षेत्र में जानवरों की लाश को दफनाने के लिए कोई निर्धारित जगह नहीं है। किसानों का मानना है जब लाश सड़ जाती है तब वह उर्वरक के रूप में परिवर्तित हो जाता है अत: वे जानवरों के लाश को अपने ही खेतों में दफनाते हैं। बिल्ली व श्वान की मौत होने पर इन्हें गांव के बाहरी क्षेत्र में स्थित नालों में फेक आते हैं। इसकी वजह से सप्ताह भर बदबू आती रहती है। निर्धारित जगह न होने के कारण यह अनिवार्य भी है।
नहर के किनारे अंतिम संस्कार
अल्नावर
नगर पंचायत के मुख्यअधिकारी वाई .जी. गद्दिगौडर ने जानकारी दी कि तालुक के विभिन्न जगहों पर जानवरों के अंतिम संस्कार के लिए निर्धारित जगह नहीं है। कई जगह पर मवेशियों की मृत्यु होने पर उनका अंतिम संस्कार नहर के किनारे कुछ लोग करते हैं तो कुछ लोग अपने खेतों में करते हैं। श्वान , बिल्ली का अंतिम संस्कार नगर पंचायत अपशिष्ट निपटान इकाई में किया जाता है।
गुडगेरी
मनुष्य की मृत्यु होने पर दफनाने के लिए उपयुक्त जगह नहीं है। पशुओं की स्थिति अत्यंत दयनीय है। बैल की मृत्यु होने पर खेतों में दफनाते हैं। किसी अन्य प्राणियों के मरने पर उन्हें गांव के बाहर फेंके जाते हैं। इनके लिए कोई निर्धारित जगह नहीं है। स्थानीय लोग इन पालतु जानवरों के संस्कार के लिए निर्धारित जगह की मांग कर रहे हैं।
कलघटगी
जानवरों व पक्षियों के कंकाल के निपटान के लिए उपयुक्त जगह नहीं है। कंकाल का निपटान नगर पंचायत अपशिष्ट निपटान इकाई में किया जाता है। नगर पंचायत मु?यअधिकारी चंद्रशेखर बी ने जानकारी दी कि यदि गलियों में किसी जानवर की मृत्यु हो तो उनका निपटान अपशिष्ट निपटान इकाई में किया जाता है। पशु चिकित्सक रवि सालिगौडर ने जानकारी दी कि पशुओं के अंतिम संस्कार के लिए दो अलग से विद्युत चितागृह खरीदने का प्रस्ताव सौंपा गया है

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