उन्होंने कहा कि जैव विविधता संरक्षण के लिए तालाब, कुओं, नहर, पहाड़, नदी के स्रोत की रक्षा आने वाली पीढ़ी के लिए करना आवश्यक है। प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। राज्य में 10 स्थलों को चिन्हित कर 5 स्थलों को जैव विविधता स्थल घोषित किया गया है। जिले के कप्पतगुड्डा व मागडी तालाब जैसे जल स्रोतों को विकसित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया। जिले के लक्ष्मेश्वर तालुक के शोट्टीकेरे (तालाब) को विरासती साइट के रूप में विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
वन उप संरक्षक ए.वी. सूर्यसेन ने कहा कि जिले के 420 हेक्टेयर क्षेत्र को वन क्षेत्र के तौर पर चिन्हित किया गया है। बस अभी केंद्र सरकार की स्वीकृति मिलना ही बाकी है। इस क्षेत्र में औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं किए जा सकेंगे। जिले के गजेन्द्रगढ़, मुंडरगी, रोण में चिन्हित वन क्षेत्र के 50 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में पौधरोपण किया गया है।
किसानों को पारंपरिक खेती की जानकारी दी जाए
जैव-स्थायित्व बोर्ड के तहत नदी, जंगल, झील और पेड़ के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए। किसानों को पारंपरिक उपज उगाने की जानकारी दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि जीआई टैग के लिए पारंपरिक फसलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जो जिले में विशेष फसलों के लिए वैश्विक मान्यता है। उन्होंने प्लास्टिक के उपयोग पर नियंत्रण करने की आवश्यकता पर बल दिया।