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हुबली

मानवीय गलतियों से बने बाढ़ के हालात

मानवीय गलतियों से बने बाढ़ के हालात -विशेषज्ञों की रायहुब्बल्ली

हुबलीAug 21, 2019 / 08:34 pm

Zakir Pattankudi

मानवीय गलतियों से बने बाढ़ के हालात

मानवीय गलतियों से बने बाढ़ के हालात,मानवीय गलतियों से बने बाढ़ के हालात

सुरक्षित क्षेत्रों को स्थानांतरण करना चाहिए

उत्तर कर्नाटक के कृष्णा नदी तट पर स्थित बाढ़ प्रभावित गांवों की जनता को वहां से दूसरी जगह सुरक्षित क्षेत्रों को स्थानांतरण करना चाहिए, निचले इलाकों में स्थित 25 प्रतिशत बांधों की ऊंचाई बढ़ानी चाहिए तथा सड़क निर्माण करने की दशकों की मांग ऐसे ही लंबित है। कृष्णा नदी तट पर लगभग 500 गांव हैं, 1.5 लाख हेक्टेयर जमीन, सिंचाई क्षेत्र बाढ़ प्रभावित हुए हैं। पिछले 45 वर्षों में कर्नाटक में पूर्व में इतनी अधिक पैमाने की बाढ़ नहीं आई है।

समझौता किया होता तो बाढ़ अधिक खतरा नहीं होता

बारिश के आरम्भ से पूर्व जलाशय से पानी छोडऩे के मुद्दे पर महाराष्ट्र अगर कर्नाटक के साथ थोड़ा समझौता किया होता तो बाढ़ का इतने अधिक खतरा नहीं होता था। पड़ोसी राज्य के जलाशयों से पानी छोडऩे के दौरान निर्धारित समय में अधिकारी पड़ोसी राज्य को जानकारी देते हैं परन्तु इस बार कोयना, आलमट्टी तथा नारायणपुर बांधों से भारी पैमाने पर पानी छोडऩे से इतनी अधिक बाढ़ आई।

बाढ़ को रोका जा सकता है

अंतरराज्यीय जल बंटवारे के बारे में उत्तर कर्नाटक के कार्यकर्ता अशोक चंदर्गी का कहना है कि जलाशय में आधे से ज्यादा पानी होने पर भी मई तथा जून में महाराष्ट्र सरकार ने कर्नाटक की मांग पर चार टीएमसी पानी नहीं छोड़ा, कृष्णा नदी तट पर प्रमुख सिंचाई योजनाओं को लागू करने को महाराष्ट्र तैयार नहीं है। सिंचाई योजना आने पर कोयना बांध से पानी के बहाव को दूसरी ओर बदल सकते हैं, इसके जरिए बाढ़ को रोका जा सकता है।

चर्चा कर वैकल्पिक मार्ग नहीं तलाशा

महाराष्ट्र तथा कर्नाटक की सरकारों को साथ मिलकर चर्चा कर वैकल्पिक मार्ग को तलाशा होता तथा कोयना बांध से मानसून से पहले अधिकतर पानी छोड़ा होता तो आज यह हालात नहीं आते। महाराष्ट्र में अधिक बारिश होने पर कोई दूसरा मार्ग नहीं होने से महाराष्ट्र के कोयना बांध से पानी छोडऩे की मजबूरी पेश आई। इसके चलते आज उत्तर कर्नाटक में हम बाढ़ तथा जान-माल का नुकसान देख रहे हैं। 5 अगस्त तक कृष्णा नदी तट पर स्थित कोयना, राधानगरी तथा वर्ना बांध पूरी तरह भर गए थे।

दोनों राज्यों की सरकारें सतर्क नहीं

जलाशयों में पानी आधा होने पर ही महाराष्ट्र 25 जुलाई से ही पानी छोड़ सकता था। मई तथा जून में कर्नाटक को पानी छोडऩे की महाराष्ट्र सरकार से पूर्व की कुमारस्वामी के नेतृत्व की गठबंधन सरकार ने कई बार विनती की थी। उस दौरान उत्तर कर्नाटक में अकाल था परन्तु महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व की सरकार ने रुचि नहीं दिखाई। बदले में पानी बंटवारे के समझौते पर हस्ताक्षर करने का कर्नाटक सरकार पर दबाव बनाती रही परन्तु कर्नाटक में पानी संग्रह की व्यवस्था नहीं होने से महाराष्ट्र के साथ पानी बंटवारे के समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो पाए। वर्ष 2005 में बाढ़ आने के बावजूद अभी तक दोनों राज्यों की सरकारें सतर्क नहीं हुई हैं।
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