क्षमा मांगना और देना वीरों का आभूषण है [typography_font:14pt;” >इलकल (बागलकोट)महावीर भवन में विराजमान जैन संत प्रशांतमुनि ने धर्मसभा में कहा कि त्याग, तपस्या, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य सहित धर्म के मार्ग पर चलने के दस सूत्र हैं। इन दस सूत्रों में क्षमा भी एक सूत्र है। ऐसे कई उदाहरण हैं कि परिवार के सदस्यों एवं दूसरे लोगों के साथ कई बार छोटी- छोटी बातों को लेकर मनमुटाव हो जाता है और यह वर्षों तक चलता रहता है। भाई का भाई के साथ, पिता का पुत्र के साथ, सास का बहू के साथ और जेठानी का देवरानी के साथ मनमुटाव रहता है, जिसकी वजह से बातचीत तक बन्द हो जाती है। इस प्रकार के मनमुटाव या बैर से स्वयं का ही नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि क्रोध, कलह व बैर जैसे कचरे को दिमाग में कभी घुसने का मौका ही नहीं देना चाहिए। कभी किसी ने यदि कोई बुरी बात कह भी दी तो उस बात को मन पर लेने के बजाय उसे भूल जाना चाहिए। जिस तरह आज के आधुनिक युग में मोबाइल या कम्प्यूटर की मैमोरी में हम अच्छी बातों को सुरक्षित करते हैं और अनावश्यक को वहां से हटा देते हैं, ठीक उसी प्रकार से अच्छी बातों को भी दिल व दिमाग में ग्रहण करना चाहिए और बुरी बातों को छोड़ देना चाहिए। जब व्यक्ति वैर रूपी गांठ बांध लेता है, तब वह बदले की भावना से आक्रांत हो जाता है और जीवन को अशांत बना लेता है। जीवन में शांति के लिए किसी के साथ भी वैर की गांठ नहीं बांधनी चाहिए। थोड़ा सा भी मनमुटाव या बोलचाल हो जाती है तो तुरंत उसका सकारात्मक हल निकाल लेना चाहिए। हमें दूसरों से सदैव अपेक्षाएं कम रखनी चाहिए। अपेक्षाएं जितनी कम होंगी उतना ही मनमुटाव कम होगा। हर व्यक्ति की यही कामना रहती है कि घर, परिवार में शांति का वास रहे। मुनि ने खमतखामना और मिच्छामि दुक्कड़ शब्द का अर्थ समझाते हुए कहा कि सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि क्षमा मांगना या क्षमा करना कायरों का काम न होकर वीरों का आभूषण है। संत कुमुदमुनि ने कहा कि आगमवाणी, धर्म और गुरुजनों के प्रति अटूट श्रद्धा व निष्ठा होनी चाहिए। उन्होंने एकलव्य का उदाहरण देते हुए कहा कि उसकी गुरु के प्रति अपार श्रद्धा थी। सम्यक ज्ञान और क्रिया से ही जीवन का विकास होता है। सही ज्ञान होने पर ही सही आचरण होता है। कार्यक्रम के अंत में मंगलपाठ किया गया।