आंखें हुई सावन-भादों, कौन सुनेगा इनकी व्यथा[typography_font:14pt;” >हुब्बल्लीपिछले दिनों हुई भारी बारिश और बाढ़ के चलते मकान गिरने से बेघर हुए पीडि़त सडक़ों पर आ गए हैं। इनमें से कुछ पीडि़त अपने टूटे आशियाने को भी नहीं छोड़ पा रहे हैं। दाने-दाने को मोहताज कई पीडि़तों की आंखें सावन-भादों की तरह अश्रुवर्षा कर रही है। इन्हीं टूटे मकानों में वे अपनी भेड़-बकरियों के साथ रहने को मजबूर हैं। दो माह पूर्व हुई भारी बारिश में गिरे अपने मकान की ओर देखते हुए हुब्बल्ली तालुक के अमरगोल की निवासी पारव्वा विभूतिमठ की आंखों में आंसू है। वह बताती है कि मकान गिरने से सडक़ों पर आए उनके परिवार की शुरू में सभी ने मदद की। अधिकारियों ने मामूली मुआवजा देकर पल्ला झाड़ लिया। हम अभी भी सडक़ों पर ही रह रहे हैं, हमें पूछने वाला कोई नहीं है। प्राप्त थोडे से मुआवजे में मकान की मरम्मत नहीं करने की इनकी स्थिति है। इसे ठीक करने निकले तो भूखा रहने की स्थिति है। अस्थाई तौर पर जिस घर में ठहरे हैं उसके किराए का भुगतान नहीं करने की स्थिति दूसरी ओर है। गिरे मकान में ही बकरियों को पालकर जीवन बिता रही पारव्वा मदद का इंतजार कर रही है। पारव्वा का कहना है कि मकान का अधिकतर हिस्सा गिरा है परन्तु जिला प्रशासन की ओर से दिए गए केवल 23 हजार रुपए एक ट्रक ईंट के लिए भी पर्याप्त नहीं है। पुनर्वास केंद्र स्थित हमें किराए के घर में जाने के बाद भी अनाज समेत जरूरी सामानों की आपूर्ति करने का अधिकारियों ने आश्वासन दिया था परन्तु अब तक किसी ने भी उनकी ओर मुडक़र नहीं देखा। बीस दिन के मासूम के साथ मंदिर में पनाह प्राप्त शिल्पा लद्दी का परिवार फिलहाल किराए के घर में है। घर के किराए का भुगतान करने का आश्वासन देने वाले अधिकारी दुबारा यहां आए ही नहीं। तीन दिन में एक बार जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य की जांच करने की व्यवस्था करने का आश्वासन देने वाले अधिकारी भी नदारद हैं। मंदिर में ही सोते हैं गांव के मंदिर में खोले गए पुनर्वास केंद्र में आश्रय प्राप्त परिवारों के कुछ लोग अब भी रात में मंदिर में ही आकर सोते हैं। एक पीडि़त का मकान एक कमरे को छोडक़र पूरी तरह गिर गया। इस कमरे में ही सभी सामान रख दिया है। मैं तथा पति यहीं सोते हैं। जच्चा बेटी को किराए के घर में छोड़ा है। मेरे दो बच्चे मंदिर में सोकर सुबह उठ आते हैं। सरकार ने घर निर्माण के लिए पांच लाख रुपए देने की बात कही थी। अधिकारियों ने मकान के सामने परिवार के सभी सदस्यों को खड़ा करके फोटो निकाला था परन्तु मुआवजा कब मिलेगा पता नहीं है। आए दिन हो रही बारिश से इस कमरे के भी गिरने के भय में ही दिन गुजार रहे हैं। गिरे हुए मकान का मुआवजा 28 हजार रुपए मिला है। इसे में किराए के घर में आकर रह रहे हैं। पति कुली मजदूरी करते हैं। गरीबों को ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए।-शोभा कल्लप्पा लद्दी, पीडि़ता,