प्राधिकरण की बैठक में नहीं हो पाया ठोस निर्णय
रायचूरु शहरी विकास प्राधिकरण की सामान्य बैठक में कसाईखाने के स्थानांतरण विषय पर चर्चा की गई है। वास्तव में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है। बस्ती के बीचों-बीच स्थित कसाईखाने के दुर्गंध की मार साल भर सहनी पड़ती है। लोगों के आवास क्षेत्र के बीचोंबीच कसाईखाना है जिसकी वजह से साल भर यहां के निवासियों को बदबू का सामना करना पड़ता है। कसाई खाने को स्थानांतरित करने की अपील विभिन्न निकाय की ओर से किए जाने के बावजूद निगम के अधिकारियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।नहीं हो पाया अनुदान का उपयोग
कई करोड़ रुपए लागत वाले विकास कार्य को अभी तक पूर्ण नहीं किया गया है। माविनकेरे (तालाब) भी इसी सूची में शामिल हो गया है। तालाब को विकसित करने के लिए प्राधिकरण की ओर से अनुदान प्राप्त हुआ है। कल्याण कर्नाटक क्षेत्र विकास बोर्ड की ओर से भी अनुदान प्राप्त हो रहा है। वास्तव में कोई भी कार्य योजना के अनुसार पूर्ण नहीं हो रहा है। निरंतर जल आपूर्ति, जल मल निकास प्रणाली निर्माण कार्य के लिए सौ करोड़ रुपए अनुदान जारी किए जाने के बावजूद सालों से दोनों कार्य लंबित हैं।दस करोड़ रुपए से निखरेगा स्वरूप
तालाब के विकास के लिए शहरी विकास प्राधिकरण की ओर से 10 करोड़ रुपए अनुदान उपलब्ध करवाया गया है। लोकप्रतिनिधियों तथा अधिकारियों ने ग्रीष्मकाल में निर्माण कार्य शुरू होने की जानकारी दी थी। समय पर निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ। गर्मी के दिनों में कोरोना संक्रमण के कारण विकास कार्य थम गया था।गाद निकालने का कार्य स्थगित
रायचूर जिला प्रशासन, शहरी विकास प्राधिकरण के सहयोग से भारतीय जैन संगठन तथा शिल्पा फाउंडेशन की ओर से गाद निकालने का कार्य जून माह में शुरू होना था परंतु गाद के निपटान से संबंधित योजना न बनाए जाने की वजह से योजना स्थगित कर दी गई है। बारिश की वजह से भी गाद निकालना संभव नहीं हो पाया।अतिक्रमण हटाना किसी चुनौती से कम नहीं
तालाब से गाद निकालने से पहले अतिक्रमण को हटाने की मांग को लेकर कई संगठनों की ओर से जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा गया है। शहरी विकास प्राधिकरण तथा जिला प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। तालाब से निकाले जाने वाला गाद का परिवहन खदान क्षेत्र में करने संबंधित विचार किया जा रहा है।इनका कहना है
तालाब की रक्षा करने से जनता के स्वास्थ्य की रक्षा संभव है। तालाब में कोई कचरा न फेंके, इसके लिए चहारदिवारी का निर्माण किया जाना चाहिए।
–नरसिंह आचार्य, सेवानिवृत्त कर्मचारी, कर्नाटक राज्य परिवहन निगम