अपने और पराए के भेद का ज्ञान होने पर ही जीवन का उत्थान[typography_font:18pt;” >इलकल (बागलकोट)कस्बे के महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में जैन संत प्रशांतमुनि ने कहा कि अपने और पराए के भेद को जाने-समझे बिना जीवन का उत्थान या कल्याण होना मुश्किल है। हम ममत्व और मोह के वश में फंसे होने के कारण अपने-पराए की गलतफहमी में जीवन गुजार देते हैं। मुनि ने कहा कि जिस देह पर व्यक्ति इतराता है, वह देह भी अपनी नहीं है। परिवार, घर, सम्पदा, धन-दौलत साथ चलने वाली नहीं है फिर भी उसके मोह-ममत्व के कारण यह मेरा है का भ्रम पाले रहते हैं। भौतिक साधनों को इक_ा करने की भूख कभी मिटती ही नहीं है। जितने ज्यादा भौतिक साधनों का उपयोग करते हैं, उतना अधिक दुख का मूल होता है। जिस विषय सुख में सांसारिक प्राणी डूबे हुए हैं, उससे दुर्गति का मेहमान बनना अवश्यम्भावी है। उन्होंने कहा कि परिवार का दायित्वों को निभाना भी कर्तव्य है पर इसमें संयम रखना जरूरी है। विवेकसम्मत मर्यादायुक्त किया गया कर्म ही सच्चा धर्म है। परिग्रह की मर्यादा में जीवन बिताना चाहिए। हम साधना का पुरुषार्थ करेंगे तो आत्मा से परमात्मा, कंकर से शंकर बना जा सकता है। मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जो साधन करके मोक्ष पा सकता है। संत कुमुदमुनि ने कहा कि दान करने की प्रवृत्ति से मन पर संयम आता है। दान इस प्रकार करना चाहिए कि एक हाथ से किया गया दान का दूसरे हाथ को पता न चले। परन्तु आजकल देखते हैं कि दान देने वाले नाम या यश के लिए दान देते हैं। ऐसा करने से अहंकार की भावना बढ़ती है। अपनी क्षमता के अनुसार तपस्या करके कर्मों की निर्जरा करते हुए आत्म कल्याण की ओर आगे बढऩे का पुरुषार्थ करें। इस मौके पर गुरुवार को देवलोकगमन पर उपाध्याय मानचन्द्र महाराज को महावीर भवन में श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई।