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इंदौर का घोषणा पत्र : 71 साल से एमजीएम मेडिकल कॉलेज के जिम्मे ही सस्ती मेडिकल शिक्षा

शहर का घोषणा पत्र : इमारतों के शिलान्यास और उद्घाटन में नेताओं ने की बड़ी-बड़ी घोषणाएं, डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने के सिर्फ दावे, नए मेडिकल कॉलेज पर नहीं ध्यान

इंदौरMay 08, 2019 / 12:43 pm

रीना शर्मा

INDORE

71 साल से एमजीएम मेडिकल कॉलेज के जिम्मे ही सस्ती मेडिकल शिक्षा

रणवीरसिंह कंग इंदौर. शहर में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो कई नए प्रोजेक्ट तैयार हैं, कई पर काम जारी है। इमारतों के शिलान्यास और उद्घाटन में सभी नेताओं ने बड़ी-बड़ी घोषणाएं की, लेकिन शहर में सस्ती मेडिकल शिक्षा देने का जिम्मा 71 साल से एमजीएम मेडिकल कॉलेज ही उठा रहा है। इंदौर में दो नए मेडिकल कॉलेज खोलने की संभावना पर जिम्मेदारों ने कभी रुचि नहीं दिखाई।
इंदौर को मेडिकल सुविधाओं के लिए भी जाना जाता है। यहां प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एमवाएच भारी दबाव में काम कर रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अस्पतालों की हालत खस्ता है, जो नए अस्पताल तैयार किए गए हैं, वहां भी विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं होने से मरीजों को सुविधा नहीं मिल पा रही है। निजी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों की संख्या लगातार बढ़ी है, लेकिन यहां इलाज काफी महंगा है। आज भी इंदौर के मरीजों को सस्ता व बेहतर इलाज कराने के लिए आसपास के राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए कई योजनाएं बनाई गई, लेकिन सस्ती शिक्षा के लिए एमजीएम के अलावा जिले में कोई नए विकल्प पर ध्यान नहीं दिया गया। निजी मेडिकल कॉलेजों की भारी फीस भरने की क्षमता नहीं होने से होनहार छात्रों के डॉक्टर बनने का सपना टूट जाता है। जो छात्र पैसा खर्च कर डॉक्टर बनते हैं, वे निजी अस्पतालों को प्राथमिकता देते हैं। सुपर स्पेशलिटी कोर्स की बात की जाए तो भी सरकारी कॉलेज इस क्षेत्र में पीछे हैं, क्योकि यहां के अस्पतालों में वह सुविधाएं ही नहीं हैं।
एक्सपर्ट ओपिनियन

विवि को पैसों की जरूरत के लिए सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अपने स्तर पर पैसों की व्यवस्था करना चाहिए। पहले भी इंजीनियरिंग, फॉर्मेसी और ईएमआरसी जैसे संस्थान विवि ने अपने दम पर शुरू किए हैं। २००२ में दिग्विजयसिंह शासनकाल में प्रोजेक्ट के लिए जमीन मिली थी। केन्द्र सराकार को भेजे प्रस्ताव पर गंभीरता नहीं दिखाई गई। बीमा अस्पताल का भी यही हाल रहा है, प्रस्ताव तो कई बनें लेकिन गंभीरता नहीं दिखाई गई। इंदौर की जरुरत मेडिकल विवि है, लेकिन जबलपुर को यह सुविधा दी गई। एक ही विवि में मेडिकल, आयुष, नर्सिंग कोर्स का काम सौंपने से व्यवस्था गड़बड़ा रही है। केन्द्र सराकर ने अपने घोषणा पत्र में 74 नए मेडिकल कॉलेज की घोषणा की है, ऐसे में जिम्मेदार गंभीरता दिखाएं तो शहर को यह सौगात मिल सकती है।
डॉ. भरत छपरवाल, पूर्व कुलपति
यहां थी संभावनाएं
ईएसआइसी
क र्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआइसी) या बीमा अस्पताल परिसर में मेडिकल कॉलेज खोलने की कवायद 10 वर्षों से जारी है। 500 बिस्तर का नया अस्पताल बनाने का भी प्रस्ताव केन्द्र सरकार के पास भेजा था। आचार संहिता से पहले यहां 300 बिस्तर के अस्पताल का भूमिपूजन कर दिया गया। कॉलेज को लेकर कोई निर्णय नहीं हो पाया। 27 फरवरी को केन्द्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार के सामने सांसद सुमित्रा महाजन ने कॉलेज का मु²ा उठाया तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में मसला होने का हवाला दिया, लेकिन यह सवाल अब भी खड़ा है कि मामला अभी कोर्ट पहुंचा, 10 सालों में क्या प्रयास हुए।
देवी अहिल्या विवि
दे वी अहिल्या विवि ने अपना मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए चाहिए करीब 300 करोड़ रुपए की योजना बनाई है। बड़ा बांगड़दा में करीब 25 एकड़ जमीन मेडिकल कॉलेज के नाम आरक्षित है। वर्ष 200२ से इसे बनाने के लिए विवि कई योजनाएं और प्रस्ताव तैयार कर चुका है। कॉलेज को लेकर गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार ने सालों से इस ओर ध्यान नहीं दिया। करीब १५ साल पहले बना प्रस्ताव केन्द्र सरकार ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को भेजा ही नहीं। विवि ने केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजने की योजना तब बनाई जब चुनाव से पहले का अंतिम बजट में देशभर में नए कॉलेज खोलने की घोषणा कर दी गई।
डॉक्टरों का सवाल अनसुलझा
एमजीएम मेडिकल कॉलेज की बात की जाए तो 500 बिस्तर का एमटीएच महिला अस्पताल बनकर तैयार है, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की इमारत अंतिम चरण में है। इसके बावजूद यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता को लेकर किसी के पास जवाब नहीं है। पीसी सेठी व बाणगंगा अस्पताल के नए भवन स्वास्थ्य विभाग को मिल चुके हैं, लेकिन डॉक्टर नहीं होने से सुविधाएं शुरू नहीं हुई। आने वाले वक्त में जिला अस्पताल को 300 बिस्तर का बनाने आदि प्रोजेक्ट शुरू होने हैं।
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