आरटीओ कार्यालय में लाइसेंस शाखा अफसरों के लिए दूध देती गाय है। एजेंट और एवजी के मार्फत बाबू-अफसर यहां से हर दिन बड़ी कमाई कर रहे हैं। इस मामले की जानकारी बड़े अफसरों को भी है, लेकिन सभी ने चुप्पी साध रखी है। हर एक लाइसेंस से विभाग को जहां 1500 रुपए का राजस्व मिलता है, वहीं इन एवजी-बाबू-अफसरों के ग्रुप को ६०० से 700 रुपए मिलते हैं। हर दिन आरटीओ 200 से 300 लाइसेंस बनते हैं।
दो बार हटाया लाइसेंस शाखा से एआरटीओ हृदयेेश यादव के साथ बाबृू अंकित चिंतामन लाइसेंस का काम देख रहे हैं। जबकि आरटीओ ने बाबू चिंतामन को पुराने वाहनों के रजिस्ट्रेशन संबंधित काम दिया है, लेकिन बाबू चिंतामन पूरे समय एआरटीओ यादव के साथ ही लाइसेंस का काम देख रहा है। बता दें कि बाबू चिंतामन को पहले भी दो बार लाइसेंस शाखा से हटाया जा चुका है।
बाबुओं की निगरानी में बैठा दिया एवजी विभागीय सूत्रों के अनुसार लाइसेंस शाखा में रवि नाम के एवजी को काम पर लगाया गया है। रवि को जिम्मेदारी दी गई है। जितने भी लाइसेंस बन रहे हैं, उनकी एंट्री की जाए और किस बाबू, एजेंट और अन्य के नाम से बन रहे हैं, उनका रिकॉर्ड मेंटेन किया जाए। रवि पहले आरटीओ में ही कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम देख रड्डहा था।
एजेंट के बगैर नहीं होता कोई भी काम प्रदेश सरकार का आरटीओ ऐसा विभाग है, जहां पर बिना एजेंट और एवजी के कोई काम नहीं होता है। अगर आवेदक खुद से अपना काम करवाने जाते हैं तो उसे एवजी और बाबू का कॉकस नियमों में ऐसे उलझा देता है कि आवेदक को मजबूरी में एजेंट का सहारा ही लेना पड़ता है।