परिवादी मनोज उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने अपनी पौने तीन वर्षीय बेटी गार्गी को 24 जनवरी 2013 को मेहरा बाल चिकित्सालय में भर्ती किया था। उसे तेज बुखार था और सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। अस्पताल में खुद को शिशु रोग विशेषज्ञ बताने वाले डा. अंशुल मेहरा बच्ची का इलाज कर रहे थे। बच्ची की हालत बिगड़ने लगी तो उसे यहां से मेस्काट अस्पताल रेफर कर दिया गया। यहां बच्ची को आइसीयू में भर्ती किया गया।
मेस्काट अस्पताल की आइसीयू में शैलेंद्र साहू और अवधेश दिवाकर नामक दो युवक डाक्टर बनकर भर्ती बच्चों का इलाज कर रहे थे. बाद में मालूम चला कि ये दोनों सिर्फ 12वीं पास थे। 26 जनवरी 2013 को बच्ची गार्गी की मौत हो गई। बेटी की मौत से आहत पिता ने दोनों अस्पतालों के खिलाफ जिला उपभोक्ता आयोग ग्वालियर में परिवाद प्रस्तुत किया था। राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश के बाद यह प्रकरण इंदौर आयोग को भेज दिया गया।
इंदौर जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद का निराकरण करते दोनों अस्पतालों पर पांच-पांच लाख रुपये अर्थदंड लगाया। आयोग ने फैसले में कहा कि पोस्टमार्टम नहीं होने से यह तो स्पष्ट नहीं है कि बच्ची के इलाज में किस तरह की लापरवाही बरती गई लेकिन यह साबित हुआ है कि इलाज में गफलत की गई. मेस्काट अस्पताल के आइसीयू में 12वीं पास युवक डाक्टर बनकर बच्ची का इलाज कर रहे थे। मेहरा अस्पताल में भी डा अंशुल मेहरा ने विशेषज्ञ नहीं होने के बावजूद खुद को शिशु रोग विशेषज्ञ बताकर बच्ची गार्गी का इलाज किया था। दोनोंं अस्पतालों ने सेवा में गंभीर लापरवाही की है।