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इंदौर

समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी में सरकारी अनुभव रहा खराब

28 हजार ने कराया था, 13 हजार ने संस्थाओं को बेचा था माल, 2019 में 25 हजार किसानों ने कराया पंजीयन

इंदौरApr 05, 2019 / 10:42 am

Mohit Panchal

samarthan mulay

समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी में सरकारी अनुभव रहा खराब

इंदौर। लक्ष्मीबाई नगर अनाज मंडी में मंगलवार को गेहूं खरीदी पर किसानों ने हंगामा खड़ा कर दिया था, जिसकी वजह से कुछ घंटे कामकाज प्रभावित रहा। किसानों का कहना था कि समर्थन मूल्य से कम कीमत पर गेहूं खरीदा जा रहा है। इधर, पिछले साल का आंकड़ा देखें तो कहानी कुछ ओर ही दिखाई देती है। उसके हिसाब से किसान संस्थाओं से ज्यादा व्यापारी को माल बेचना पसंद करते हैं।
किसानों को फसल की अच्छी कीमत देने के लिए सरकार समर्थन मूल्य घोषित करके माल खरीदती है। गेहूं, चना या अन्य अनाज की खरीदी के लिए एक पैमाना बनाया गया है। क्वालिटी तय की गई है कि उससे हलका माल नहीं खरीदा जाएगा। उसके आधार पर केंद्र पर माल लिया जाता है। 26 मार्च से इंदौर जिले के 51 केंद्रों पर गेहूं व चने की खरीदी शुरू हो चुकी है। अब तक 13 हजार 292 मीट्रिक टन गेहूं मार्कफेड के लिए लिया जा चुका है। इस बीच मंगलवार को लक्ष्मीबाई मंडी में एक बवाल हो गया। किसानों का आरोप था कि व्यापारी समर्थन मूल्य से कम दाम पर माल खरीद रहे हैं। इस पर व्यापारियों का कहना था कि गेहूं ही खराब हैं, जिसकी वजह से उसकी यह कीमत लगाई जा रही है। उससे अच्छा होता तो किसान सरकारी संस्था में जाकर दे दें। कौन सच-कौन झूठ की जंग में पिछले साल के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं, जो आंखें खोलने वाले हैं।
ये है पंजीयन का आंकड़ा
इस साल भी सरकारी खरीद शुरू हो गई है। गेहूं के लिए 25 हजार 223 किसानों ने अब तक पंजीयन कराया है। इसके अलावा चने के लिए 10 हजार 571 किसानों ने पंजीयन कराया है। गेहूं की खरीदी के लिए 57 केंद्र बने हैं तो चने की खरीदी सात केंद्रों से होगी।
ये है सच्चाई
वर्ष 2018 में इंदौर जिले में गेहूं बेचने के लिए 28 हजार 131 किसानों ने पंजीयन कराया था। चौंकाने वाली बात ये है कि सिर्फ 12 हजार 878 किसानों ने केंद्र पर माल बेचा। उसका आंकड़ा 1 लाख 8 हजार 766 मीट्रिक टन था। उस हिसाब से 15 हजार 303 ने पंजीयन तो कराया था, लेकिन संस्था को माल नहीं दिया। इसका अर्थ है कि सभी ने व्यापारियों को ही माल बेचा।
सच्चाई ये है कि माल अच्छा होने पर व्यापारी उसकी अच्छी कीमत देते हैं। इसकी वजह से वह संस्था के पास नहीं जाते हंै, जबकि चने का मामला कुछ अलग है। 15 हजार 471 किसानों ने पंजीयन कराया था, जिसमें से 11 हजार 766 किसानों ने संस्था को माल बेचा। चना व्यापारियों को इसलिए नहीं बेचा गया, क्योंकि सरकार ने ऊंची कीमत पर खरीदा था।

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