आइआइटी इंदौर की पहली बैच २००९ से शुरू हुई थी। कैंपस के लिए सिमरोल में जमीन अलॉट हुई। वहां इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होने तक यूनिवर्सिटी के आइइटी (इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी) के दो ब्लॉक किराए पर लिए गए। तब माना जा रहा था कि आइआइटी के माहौल का फायदा आइइटी के छात्र भी उठा सकेंगे। मगर, शुरुआत से ही आइआइटी और आइइटी में मतभेद रहे। २०१२ में ही आइआइटी को ये कैंपस खाली करना था। निर्माण में हुई देरी के कारण करार २०१४ तक बढ़ाया गया। इसके बावजूद सितंबर २०१५ तक आइआइटी का प्रशासनिक काम-काज आइइटी से चला। यूनिवर्सिटी प्रबंधन उस समय हैरान रह गया जब आइआइटी ने कैंपस खाली करते समय दीवारों पर लगी बिजली फिटिंग (वायरिंग) के साथ कई जगह पर परमानेंट वायर निकालने के लिए दीवारों को भी खोद दिया।
आइआइटी नहीं चुका पाया किराया यूनिवर्सिटी के हिसाब से आइआइटी ने करीब साढ़े तीन लाख रुपए किराए के ही नहीं चुकाए है। इसके अलावा बिल्डिंग को हुए नुकसान की भरपाई के लिए भी पूर्व रजिस्ट्रार आरडी मूसलगांवकर ने आकलन कराया था। तब आइआइटी को पैसे जमा कराने के लिए रिमाइंडर देने का निर्णय भी हुआ। लेकिन, मूसलगांवकर के रिटायरमेंट के बाद जिम्मेदार हिसाब करना ही भूल गए। अब कुलपति प्रो.नरेंद्र धाकड़ ने आइइटी से हिसाब-किताब तलब किया है। कुलपति का कहना है कि आइआइटी को बकाया राशि जमा कराने के लिए पत्र भिजवाया जाएगा।