इंदौर

आ गया ‘डीपफेक डिटेक्शन टूल’, मिनटों में हो जाएगी फेक वीडियों, फोटो और ऑडियो की पहचान

ट्रैफिक का लोड पता करने और बड़े सर्वे आसानी से करने में मददगार तकनीक…

इंदौरApr 11, 2024 / 03:07 pm

Ashtha Awasthi

इंदौर। एआइ (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) ने जैसे हमारे काम को आसान किया है, वैसे ही हैकर्स के लिए भी रास्ते बन गए हैं। हैकर्स एआइ की मदद से डीपफेक का जाल बिछाकर साइबर फ्रॉड को अंजाम दे रहे हैं। डीपफेक की चुनौती से निपटने के लिए साइबर एक्सपर्ट लगातार प्रयास कर रहे हैं। शहर की एक आइटी कंपनी ने डीपफेक डिटेक्शन टूल तैयार किया है। कई और एक्सपर्ट्स ने एआइ टूल बनाए हैं, जो लोगों के लिए मददगार साबित हो रहे हैं।

Q-Safe डीपफेक से रखेगा सेफ

हैकर्स आम लोगों को शिकार बनाने के लिए डीपफेक का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे फेक वीडियों, फोटो और ऑडियो तैयार कर रहे हैं। लोग हैकर्स के इस जाल में न फंसें, इसलिए शहर के साइबर एक्सपर्ट अभिजीत अकोलेकर ने अपनी टीम के साथ मिलकर Q-Safe टूल तैयार किया है, जो डीपफेक को पहचानने में मदद करेगा। चुनावी माहौल में हैकर्स की नजर नेताओं पर है और वे डीपफेक से उन्हें निशाना बना सकते हैं। इससे बचने में यह टूल एक ऑप्शन साबित होगा। इस पर किसी भी फोटो, वीडियो और ऑडियो को अपलोड करने पर पता चल जाएगा कि वह रियल है या हैकर्स द्वारा बनाया गया है। इसे टीम और डेवलप कर रही है, जिसके बाद इसका इस्तेमाल रियल टाइम डिटेक्शन में भी किया जा सकेगा। इससे फेक डॉक्यूमेंट को भी स्कैन किया जा सकेगा।

पशुओं के सर्वे में मदद

कई बार बड़ा सर्वे करने में बहुत समय लगता है और सही डाटा नहीं मिल पाता। कुछ लोग जानवरों की स्थिति पता करने के लिए जंगलों का सर्वे करते हैं, जो आसान नहीं होता। इसके लिए एक्सपर्ट शावेज शेख ने एआइ टूल तैयार किया है, जो जानवरों का पता लगाने में मदद करेगा। इसमें जितना एरिया कैमरा कैप्चर करेगा, उसमें पता चल जाएगा कि कितने जानवर हैं, किस प्रजाति के हैं, उनका जेंडर क्या है। एआइ कैमरा बैकेंड को जानकारी भेजता है, जिसके बाद रिजल्ट जारी होता है। इसे कई बड़ी फर्म चलाने वाले लोग इस्तेमाल कर रहे हैं।

ट्रैफिक का पता लगाने में सक्षम

एक्सपर्ट फहीम हसन ने ट्रैफिक को लेकर ऐसा टूल तैयार किया है, जो गाडि़यों को डिटेक्ट करने के साथ ट्रैफिक मैनेजमेंट में भी मदद करेगा। व्हीकल डिटेक्शन टूल से जानकारी मिल जाएगी कि कितनी गाडि़यां निकल रही हैं, गाडि़यों का मॉडल क्या है, गाड़ी किस शहर में रजिस्टर्ड है, उसका मालिक कौन है। ट्रैफिक लोड का पता लगाने में भी इसकी मदद ली जा सकती है। यह क्षेत्र के हिसाब से ट्रैफिक लोड का पता लगा लेता है।

एक तय समय में कितनी गाडि़यां उस क्षेत्र से गुजरी, उनमें कितनी दो पहिया और चार पहिया थीं, इसे ट्रेक किया जा सकता है। इससे यातायात को दुरूस्त करने और प्लानिंग बनाने में मदद मिलेगी। कई बड़ी मल्टियों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। वहां यह टूल गाडि़यों की नंबर प्लेट स्कैन कर पता लगाता है कि कौनसी गाड़ी मल्टी की है और कौनसी बाहर से आई है।

 

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