इंदौर. शहर में गुरुवार से नेत्र विशेषज्ञों की अंतरराष्ट्रीय कॉन्फे्रंस शुरू हुई। चार दिवसीय 77 वीं एनुअल कॉन्फे्रंस में देश से सात हजार और विदेशों से 200 से ज्यादा फैकल्टीज, स्पेशलिस्ट व डेलिगेट्स शामिल हो रहे हैं।
पहले दिन विभिन्न सेशन में डॉक्टर्स ने बच्चों की आम परेशानियों पर बात की। मोबाइल, टीवी और कम्प्यूटर के इस्तेमाल से आंखें खराब होने की आम धारणा को गलत ठहराया। डॉक्टर्स का कहना है गैजेट्स के इस्तेमाल में परेशानी नहीं है, गलत ढंग से उपयोग करना परेशानी की वजह।
मोबाइल : मोबाइल आंखों से कम से कम सवा फीट दूर रखकर ही इस्तेमाल करें। मोबाइल अंधेरे में देखने से बचना चाहिए। रोशनी कम है तो मोबाइल की रोशनी कम रखें। टीवी : टीवी 8 से 10 फीट दूर से देखें। कमरे में पर्याप्त रोशनी हो। बच्चों को रोज दो घंटे बाहर खेलने भेजें। जो बच्चे बंद कमरे में ज्यादा रहते हैं, उन्हें माइनस का चश्मा लगता है।
कम्प्यूटर-लैपटॉप : गलत ढंग से बैठने पर नुकसान होता है। 2 फीट से ज्यादा दूरी रखें। हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड रुककर 20 फीट दूर की वस्तु देखें। 20 बार पलक झपकाएं। आंखें दुनिया देखने की खिडक़ी
आंखें दुनिया को देखने की खिडक़ी है। डॉक्टर नेत्र विकारों को दूर कर मानवता की सेवा कर रहे है। दुनिया को हम एक बच्चे की नजर से देखें तो सारी चिंताएं गायब हो जाएंगी। कॉन्फ्रेंस की शुरुआत करते हुए यह बात नोबल पुरस्कार प्राप्त कैलाश सत्यार्थी ने कही।
इंजेक्शन से रोशनी साइटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉ. ललित वर्मा ने कहा, देश के 70 मिलियन लोग डायबिटीज से पीडि़त हैं। १० फीसदी आबादी को यह मालूम ही नहीं कि वे मधुमेह से पीडि़त हैं। इन मरीजों में से २५ फीसदी की आंखों पर सीधा असर होता है। एक फीसदी को स्थायी अंधत्व का शिकार होना पड़ता है।
बिना देखे, कैसे सीखें जयपुर के सर्जन व साइंटिफिक कमेटी के सदस्य डॉ. वीरेन्द्र अग्रवाल ने कहा, हमारे पास आने वाले अधिकतर बच्चे स्कूल में पढ़ाई में कमजोर घोषित होते हैं। बोर्ड पर टीचर बच्चे को जो सिखाना चाहते हैं, वह उसे ठीक से देख ही नहीं पाता। चश्मा लगाने के बाद दो से चार माह में वे पढ़ाई में होशियार हो जाते हैं।
मधुमेह की साल में एक बार जांच जरूरी एआइओएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. माझी ने कहा, देश में मधुमेह मरीजों में आज भी आंखों को लेकर जागरूकता की कमी है, जबकि सबसे ज्यादा व पहला खतरा आंखों पर ही होता है। डायबिटीज मरीजों को साल में एक बार आंखों की जांच जरूर कराना चाहिए।
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