15 साल सत्ता से दूर कांग्रेस साल के अंत में होने वाले चुनाव में कोई कसर छोडऩा नहीं चाहती है। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया लगातार प्रदेश का दौरा कर संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। अब 17 सितंबर को राहुल गांधी भी भोपाल दौरे पर हैं। वे ब्लॉक अध्यक्षों की बैठक में संगठन को मजबूत करने के साथ चुनाव की रणनीति पर चर्चा करेंगे।
बैठक में सीधे राहुल का भाषण हुआ तो ठीक, लेकिन उन्होंने कौन-कौन से जिले से कितने कितने आए हैं, ये पता लगा लिया तो इंदौर शहर की फजीहत हो जाएगी। सच्चाई ये है कि इंदौर में २४ ब्लॉक है, जिसमें एक जगह भी नियुक्ति नहीं हुई है। इसके पीछे की वजह शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रमोद टंडन व कार्यकारी अध्यक्ष विनय बाकलीवाल के बीच खींचातानी माना जा रहा है।
टंडन की बिना सहमति के बाकलीवाल ने प्रवक्ता नियुक्त कर दिए थे। इस पर टंडन की आपत्ति के बाद में प्रदेश कांग्रेस ने फरमान जारी कर दिया था कि कार्यकारी को नियुक्ति का अधिकार नहीं है। इसके बाद बाकलीवाल ने अपने कदम पीछे ले लिए, लेकिन टंडन के बीमार होने पर प्रदेश से अनुमति लेकर रफीक खान को कार्यालय मंत्री नियुक्त किया।
इधर, टंडन स्वस्थ्य लाभ ले रहे हैं, ऐसे में दोनों के बीच समन्वय कैसे हो, इस फेर में ब्लाक अध्यक्षों की गुत्थी उलझी हुई है। मजेदार बात ये है कि कांग्रेस सितंबर में प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करने का दावा कर रही है लेकिन इंदौर में ब्लाक अध्यक्षों के नाम की घोषणा नहीं हो पा रही है।
इंदौर से बनता है संभाग में माहौल इंदौर के लिए राजनीतिक मान्यताएं ये भी हैं कि यहां से मालवा-निमाड़ का राजनीतिक माहौल बनता है। ऐसे में इंदौर में ही ब्लाक अध्यक्षों व पदाधिकारियों की नियुक्ति नहीं हो रही है तो संभाग की स्थिति क्या होगी।
एक कारण ये भी… एक तरफ कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व चाहता है कि ब्लॉक लेवल पर मजबूती आए। दूसरी तरफ स्थानीय नेता किसी विवाद में पडऩे के मूड में नहीं हैं। हर विधानसभा में चार-पांच ब्लॉक हैं, जिसमें एक मूल अध्यक्ष व दो-तीन कार्यकारी की नियुक्ति हो सकती है। सभी विधानसभाओं में दावेदारों की फौज है। हर नेता अपने समर्थक को बनाना चाहता है। यही कारण है कि कोई विवाद में पडऩा नहीं चाहता है। जिसके भी समर्थक नहीं बनेंगे, वह बवाल करेगा, जिससे सीधी दुश्मनी हो जाएगी।