सभी मरीज 8 अगस्त को राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम के तहत ऑपरेशन के लिए हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे। उसी दिन इनके ऑपरेशन हुए। अगले दिन आंखों में दवाई डालने के बाद इंफेक्शन हुआ और मरीजों ने हंगामा शुरू कर दिया। सीएमएचओ डॉ. प्रवीण जडिय़ा ने बताया की जानकारी मिली तो हमने निजी और सरकारी डॉक्टरों का दल बनाकर अस्पताल में भेजा था। यहां जो दवाईयां मरीजों की आंखो में डाली गई उसकी जांच करवा रहे हैं। इसके साथ ही अस्पताल प्रबंधन की तरफ से तो कोई लापरवाही नहीं हुई इसकी भी जांच की जा रही है। मामले के बाद अस्पताल का ओटी भी सील कर दिया है और यहां आंखों के ऑपरेशन पर पाबंदी लगा दी है। जांच के बाद कारण स्पष्ट होने पर कड़ी कार्रवाई की बात कही जा रही है।
अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि संक्रमण का कारण अब तक पता नहीं चला है। अन्य विशेषज्ञ भी जांच कर चुके हैं। सैंपल भी जांच के लिए भिजवाए हैं। दवा से इंफेक्शन की बात सामने आ रही है। पूर्व में फुटबाल खिलाड़ी रहे मनोहर हरोर की बाईं आंख के मोतियाबिंद का ऑपरेशन भी हुआ था। ऑपरेशन के बाद जब दवाई डाली तो उन्हें आंख से दिखना बंद हो गया। एक दिन के ऑपरेशन के लिए अस्पताल आए मनोहर को यहां 10 दिन हो गए हैं। पूरे दिन बिस्तर पर ही रहते हैं। धार जिले की आहू निवासी रामी बाई की भी हालत कुछ एसी ही है।
पूर्व में भी फेल हो चुके हैं ऑपरेशन
गौरतलब है की इंदौर आई हॉस्पिटल में दिसंबर 2010 में भी मोतियाबिंद के ऑपरेशन फैल हो गए थे, जिसमें 18 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। इस पर तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. शरद पंडित ने संबंधित डॉक्टर व जिम्मेदार कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुशंसा की थी। 24 जनवरी 2011 को अस्पताल को मोतियाबिंद ऑपरेशन व शिविर के लिए प्रतिबंधित कर दिया। ओटी के उपकरण, दवाइयां, फ्ल्यूड के सैंपल जांच के लिए एमजीएम मेडिकल कॉलेज की माइक्रोबायोलॉजी लैब भेजे गए थे। बता दें कि 2015 में बड़वानी में भी इसी तरह की घटना में 60 से ज्यादा लोगों की रोशनी चली गई थी।
मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा- इंदौर के आई अस्पताल की घटना दुखद है। मामले की जांच के लिए कमेटी का गठन किया गया है इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अस्पताल का लाइसेंस रद्द किया जाएगा।