अंग्रेजो को भगाने के लिए पूरे देश में आंदोलन चला था, जिसमें कई लोगों को अपनी जान की कुर्बानी भी देनी पड़ी। इंदौर में आंदोलनकारियों का आंकड़ा छोटा नहीं था। वर्षों पहले सूची तैयार की गई थी, जिसमें इनकी संख्या ६५० के करीब थी। एक दशक पहले जिला प्रशासन ने सूची का सर्वे कराया था, जिसमें २९७ ही बचे थे।
आज भी वही सूची प्रशासन के पास मौजूद है। चौंकाने वाली बात ये है कि पिछले पांच साल से हर बार कलेक्टर की ओर से तहसीलदार को सूची सौंपकर सर्वे करने के निर्देश दिए जाते हैं, लेकिन राष्ट्रीय त्योहार के खत्म होते ही आदेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
स्थिति ये है कि २९७ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से कितने अभी जीवित हैं, इसकी ठीक जानकारी विभाग के पास नहीं है। हर साल दोनों ही त्योहारों पर सभी के नाम के कार्ड बनते हैं और पटवारियों को दिए जाते हैं कि वे ससम्मान देकर आएं। इसकी रिपोर्ट भी दी जाती है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि न्योता देने में भी कितना फर्जीवाड़ा होता है।
सिर्फ एक दर्जन नाम
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को लेकर संस्था नेताजी सुभाष मंच आयोजन करता है। संयोजक मदन परमालिया की सूची में सिर्फ एक दर्जन ही नाम हैं। इंदौर में १९८७ की लड़ाई लडऩे वाले तात्या टोपे का परिवार भी रहता है। वहीं जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं रहे, उनकी पत्नी को भी उनकी संस्था वही सम्मान देती है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को लेकर संस्था नेताजी सुभाष मंच आयोजन करता है। संयोजक मदन परमालिया की सूची में सिर्फ एक दर्जन ही नाम हैं। इंदौर में १९८७ की लड़ाई लडऩे वाले तात्या टोपे का परिवार भी रहता है। वहीं जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं रहे, उनकी पत्नी को भी उनकी संस्था वही सम्मान देती है।
ये हैं आजादी की लड़ाई के फौजी
– माणकचंद मारू
– श्याम कुमार आजाद
– आनंद मोहन माथुर
– स्वरूप नारायण मोड़
– किशनलाल गुप्ता
– रखबचंद बावेल
– डॉ. दतात्रे कापसे
– डॉ. मधुकर घोलप
– तेजमल नांदेचा
– नरेंद्रसिंह तोमर
– बालचंद पाठक
– माणकचंद मारू
– श्याम कुमार आजाद
– आनंद मोहन माथुर
– स्वरूप नारायण मोड़
– किशनलाल गुप्ता
– रखबचंद बावेल
– डॉ. दतात्रे कापसे
– डॉ. मधुकर घोलप
– तेजमल नांदेचा
– नरेंद्रसिंह तोमर
– बालचंद पाठक