निगम ने सबसे ज्यादा पैसा कान्ह-सरस्वती नदियों की सफाई पर खर्च किया है। इनकी हालत थोड़े दिन तक तो ठीक रही, फिर वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति हो गई है। नदियों पर छह जगहों पर बने सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के आसपास पानी साफ नजर आता है, लेकिन आगे हालत बदतर है। कई जगहों पर पानी नहीं और अगर है, गंदा और गाद से भरा हुआ है। साथ ही जलकुंभी अलग छाई हुई है। नदियों को साफ कर खूबसुरत बनाने का दिखाया गया सपना कहीं टूट न जाए, क्योंकि कान्ह-सरस्वती नदी के कई हिस्सों में जलकुंभी की हरियाली फैली हुई है। सबसे ज्यादा जलकुंभी जवाहर मार्ग पुल के यहां सरस्वती नदी में है, जिसमें पानी की जगह जलकुंभी ही दिख रही और कुछ नहीं है। कर्बला पुल के पास भी यही हालत है। जलकुंभी को साफ करने में निगम हर वर्ष लाखों रुपए खर्च कर देता है। सफाई के बाद फिर से नदी में जलकुंभी हो जाती है। इसका स्थायी हल निगम आज तक नहीं ढूंढ पाया, जबकि पानी को प्रदूषित करने में जलकुंभी अहम् रोल अदा करती है। नदी में पैदा होने वाली जलकुंभी पानी के बहाव को भी 40 प्रतिशत तक खत्म कर देती है। गौरतलब है कि जलकुंभी का भराव और गाद सहित कचरा नदियों में भरा पड़ा है, जो निगम अफसरों की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा रहे हैं।
इधर, जलकुंभी को लेकर जब जल यंत्रालय एवं ड्रेनेज विभाग के कार्यपालन यंत्री सुनील गुप्ता से बात की गई, तो उनका कहना था कि नदी में से जलकुंभी खत्म होने में दो से तीन वर्ष लगेंगे। नदी में आने वाले सीवर के पानी को नाला टेङ्क्षपग के जरिए रोक तो दिया गया, लेकिन नदी में अभी भी गाद के साथ इंडस्ट्री और घर से निकलने वाले पानी में आने वाला साबुन-सर्फ जमा हुआ है। इससे जहां नदी में बार-बार झाग बनते रहते हैं, वहीं फास्फोरस की वजह से जलकुंभी पैदा होती है। एसटीपी से साफ पानी नदी में छोड़ा जा रहा है। इसके चलते आने वाले दो-तीन वर्ष में यह दोनों समस्या खत्म हो जाएगी।