शहर में 12 मेजर रोड हैं, इनमें से अब तक एमआर-10 ही पूरी हो सकी और एमआर-9 आधी-अधूरी बनाकर छोड़ दी। एमआर-4 भी पूरी नहीं हो पाई है। इसके अलावा तमाम मेजर रोड बनाना बाकी हैं, जिनमें से कई शहर में हैं और आज उनकी सख्त जरूरत है, लेकिन बनाने की कवायद जिस सडक़ की है, उसकी फिलहाल ज्यादा जरूरत नहीं है। एमआर-12 ऐसी सडक़ है, जो उज्जैन रोड पर ठीक वहीं से निकलनी है, जहां से एमआर-10 शुरू होती है और बायपास पर ग्राम अरंडिया में खत्म होगी। एमआर-10 के ही समानांतर और एक ही स्थान से निकलने वाली सडक़ की जरूरत समझ से परे है, वह भी तब जबकि अभी यहां मात्र 45 फीसदी जमीन ही आईडीए के पास आई है। ऐसे में आईडीए ने इस सडक़ के लिए टेंडर जारी कर दिया और कहा जा रहा है कि अगले महीने से काम शुरू करवाया जा सकता है।
चौड़ाई ही कम कर दी
मास्टर प्लान में यह सडक़ 60 मीटर (यानी आठ लेन) की है, लेकिन आईडीए को इसे बनाने की इतनी जल्दी है कि पूरी जमीन नहीं मिल पाई तो जो मिली, उसी में तैयारी शुरू कर दी। टेंडर चार लेन सडक़ का निकाल दिया। यानी सडक़ की चौड़ाई ही आधी कर दी गई। दरअसल आईडीए जल्द से जल्द सडक़ बनाना चाहता है, ताकि यहां के बिल्डरों को फायदा मिल सके, भले ही पूरी चौड़ाई में न बनें।
बिल्डरों का दबाव है…
एमआर-12 की जरूरत को लेकर जब जानकारी जुटाई तो सामने आया कि यह पांच गांवों भांगिया, शकरखेड़ी, कैलोदहाला, लसूडिय़ा मोरी, तलावली चांदा और अरण्डिया होकर गुजरेगी। इन पांचों गांवों में बिल्डरों और कॉलोनाइजरों ने अब तक छोटे-बड़े सौ से अधिक नक्शे पास करवाए हैं, जिनमें 60 से अधिक नक्शे हाउसिंग प्रोजेक्ट और आवासीय कॉलोनियों के हैं। काफी माल तो एमआर-12 का बताकर बेच दिया, मगर अब संपत्तियां नहीं बिक रहीं। इनकी तरफ से ही सडक़ के लिए इंदौर से भोपाल तक दबाव बनाया जा रहा है।
किसान भी नहीं सडक़ के पक्ष में
एमआर-12 को मास्टर प्लान की सडक़ बताया जा रहा है, हालांकि मास्टर प्लान में अभी इसका नामकरण नहीं हुआ। आईडीए ने इसके दोनों तरफ 150 मीटर तक योजना 177 लागू कर किसानों की आपत्तियों पर भी सुनवाई की, जिसमें दो हजार के करीब आपत्तियां आई थीं और किसान इस योजना के पक्ष में कतई नहीं थे। यही कारण है कि चार साल बाद भी मात्र 45 फीसदी जमीन ही आईडीए हासिल कर पाया, जिसमें से काफी जमीन तो सरकारी है।