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इंदौर

65 हजार साल पुरानी सभ्यताओं में भारतीय मिश्रित सभ्यता सबसे सर्वश्रेष्ठ: जोसेफ

अभ्यास मंडल व्याख्यान माला चौथा दिन: वैदिक संस्कृति और भाषाई विकास में हम दुनिया में आगे

इंदौरMay 29, 2019 / 06:08 pm

हुसैन अली

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65 हजार साल पुरानी सभ्यताओं में भारतीय मिश्रित सभ्यता सबसे सर्वश्रेष्ठ: जोसेफ

इंदौर. सत्तर हजार साल पहले अफ्रीका से आए खानाबदोश लोग पूरी दुनिया में फैल गए। ये कहां से आए इस बात को समझना कठिन है। 65 हजार साल पुरानी सभ्यता-संस्कृतियों में हमारी भारतीय सभ्यता-संस्कृति संस्कृति श्रेष्ठ है। क्योंकि हमारा जीन मिश्रित और विविधता लिए हैं।
आज भी हम भाषा और वैदिक संस्कृति के विकास में सबसे आगे हैं। पिज्जा और सॉस जैसे आधुनिक खान-पान का श्रेय लेने का दावा कोई भी देश करे, भारत में 2000 हजार साल से भी पुराने व्यंजन हैं। दुनिया की सभ्यताओं पर आज भी अफ्रीकन छाप है, भारतीय संस्कृति-सभ्यता मिश्रित और अनूठी है। जातिवाद बहुत पुराना नहीं है, यह 2000 साल पहले शुरू हुए राजनीतिक विकास के साथ आगे बढ़ता गया। आधुनिक भारत की पहचान ही विविध जातियां-धर्म-भाषाएं बन गई हैं। बावजूद इसके हमारा देश एक है। यह विचार प्रसिद्ध विचारक एवं इतिहासकार टोनी जोसेफ ने अभ्यास मंडल की ग्रीष्मकालीन व्याख्यान माला में जाल सभागृह में व्यक्त किए। जोसफ हमारे पूर्व व वर्तमान को अर्थवत्ता प्रदान करते प्रारंभिक भारतीय विषय पर बोल रहे थे। इतिहास से जुड़े इस जटिल विषय को उन्होंने स्लाइड के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया, हमारी सभ्यता अलग-अलग सभ्यताओं से मिल कर बनी है। सबसे पहले 65 हजार साल पहले होमोसेपियंस आए। आखिरी में आर्य लोगों ने भारत में प्रवेश किया। हडप्पा संस्कृति हमारी सबसे आधुनिक सभ्यता है। हमारे यहां सबसे पहले खेती के प्रमाण बलूचिस्तान स्थित महेलगार में मिलते हैं। इसके बाद गंगा के ऊपरी इलाके में लाहूरदेवा में गेहंू-चावल की खेती की जाती थी। भारत ही एक एेसा देश है, जहां खेती में अलग-अलग तरह के प्रयोग किए गए। इसके बाद भाषाई विविधता विकसित हुई और पूरे देश में आज भी अनेक भाषाएं-बोलियां बोली जा रही हैं। पुरातनकालीन सभ्यता के लोग आज भी अंडमान निकोबार में मौजूद हैं।
उन्होंने कहा, मध्यप्रदेश में भोपाल के निकट भोजपुर के पास में स्थित भीमबेटका ऐसी जगह है, जहां पर प्राचीनतम भारत में किसी व्यक्ति का मकान होने का साक्ष्य सामने आता है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता के अलावा गुजरात के ढोला वीरा और राखीगढ़ी का भी उदाहरण दिया, जहां पर कि मानव सभ्यता विकसित होने के प्रमाण मौजूद हैं। इन स्थानों पर बने पुरातत्वीय ढांचे आज भी उस समय के रहन-सहन, खान-पान को बताते हैं। आज चाहे पिज्जा बनाने का श्रेय कोई सा भी देश ले रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि 2000 साल पहले ही भारतीय पूर्वज पिज्जा बना चुके हैं। सॉस बनाने की कला, हड़प्पा के लोगों ने विकसित की थी।
भारतीयों के पूर्वजों की कहानी
उन्होंने अनेक उदाहरणों से विश्व सभ्यता के विकास क्रम को बताया। हमारे सामने जेनेटिक प्रमाण हैं। एक दूसरे काल के बीच संबंध बताता हैं। अमेरिकन, यूरोपियन सभ्यता अनेक बार विस्थापित हो चुकी हैं। हमारे देश में पूर्वजों की कहानी साक्ष्य सहित मौजूद हैं। कार्यक्रम में अरविंद पोरवाल, अतुल लागू, नेताजी मोहिते, प्रवीण जोशी और वैशाली खरे ने स्वागत किया, संचालन मनीषा गौर, आभार अजीत सिंह नारंग ने किया । स्मृति चिन्ह कवि सरोज कुमार ने भेंट किया
सभ्यता का अध्ययन पहचान बताता है
उन्होंने कहा, पुरातत्वीय अध्ययन सभ्यता और संस्कृति की पहचान बताता है। इसी से इस बात का पता चलता है, हम कौन है? कहां से आए? हमारा विकास कैसे हुआ? अब हमें कहां जाना है? भारतीय सभ्यता के अध्ययन से इन सभी बातों का पता चलता हैं। हमारे व्यापार-व्यवसाय के विकास की कहानी भी इसी में छुपी हैं।

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