कॉन्फ्रेंस में सबसे पहले पीडियाट्रिक्स ऑर्थोपेडिक्स विषय पर चर्चा की गई। दूसरे सेशन में केस पर आधारित सामूहिक चर्चा की गई। तीसरे सेशन में ट्रामा यानी आकस्मिक चिकित्सा में उपचार पर अलग-अलग विषय विशेषज्ञों ने राय रखी। चौथे सेशन में ट्रामा के साथ ही ट्यूमर जैसी जटिल बीमारी पर चर्चा की गई। इनमें डॉक्टर्स ने म्यूचल एक्सचेंज ऑफ नॉलेज के लिए तकनीकों पर चर्चा की। अंतिम सेशन में जूनियर डॉक्टर्स ने कई रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए।
सचिव डॉ. शर्मा ने बताया, रविवार सुबह 9 बजे से चार सेशन भी हुए। पहले व दूसरे सेशन में टीएचआर पर चर्चा हुई । तीसरे सेशन में पेनलिस्ट डिस्कशन और अंतिम सेशन में वर्कशॉप आयोजित की गई। डॉ. राजीव हिंगोरानी ने प्रेसेंटेशन दिया।
भविष्य में डॉक्टर के कंधे पर स्टेथोस्कोप नहीं, बल्कि में हाथ में अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी मशीन का हैंडल होगा। पोर्टेबल मशीनें आने के बाद चिकित्सा क्षेत्र के इस सबसे बेहतर आविष्कार से कम समय में अच्छा इलाज दिया जा सकता है। यह बात चोइथराम अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र के गहन चिकित्सा इकाई के डॉ. आनंद सांघी और डॉ. रतन सहजपाल ने दो दिनी कार्यशाला के पहले दिन शनिवार को कहीं। कार्यशाला में कई शहरों से गहन चिकित्सा इकाई के डॉक्टर शामिल हुए। निदेशक, चिकित्सा सेवाएं डॉ. सुनील चांदीवाल ने बताया,कार्यशाला में क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ अल्ट्रासाउंड की नवीनतम तकनीक सीखेंगे और इसका महत्व जानेंगे। मुंबई से आए डॉ. केदार तोरास्कर ने कहा, गंभीर मरीजों की देखभाल के लिए आइसीयू में अल्ट्रासाउंड का उपयोग बेहतर इलाज व अच्छे परिणाम के साथ सुरक्षा के लिए भी करना चाहिए। पुणे के डॉ. प्रदीप डिकोस्टा ने आइसीयू रोगियों के बेहतर परिणाम के लिए अल्ट्रासाउंड का प्रशिक्षण लेने की सलाह दी। डॉ. मनीष पाठक ने बताया, आइसीयू में मरीजों को सेंट्रल लाइन डालने से महत्वपूर्ण धमनियों को नुकसान पहुंचता है। चोइथराम अस्पताल के उपनिदेशक, चिकित्सा सेवाएं डॉ. अमित भट्ट ने बताया, कार्यशाला के दूसरे दिन अल्ट्रासांउड का लाइव डेमोंस्ट्रेशन दिया जाएगा।