सहजता और सेंस ऑफ ह्यूमर ने टेनी दा को बनाया रोचक[typography_font:14pt;” >इंदौर. सौ बरस पहले लिखी गई चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ हिन्दी साहित्य की क्लासिक कहानी मानी जाती है। इस एक कहानी ने गुलेरी को अमर कर दिया। प्रेम, त्याग और समर्पण की अनूठी कहानी है उसने कहा था। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर अनवरत थिएटर ग्रुप के कलाकारों ने इसी कहानी पर आधारित नाटक का मंचन किया। अभिनव कला समाज के हॉल में हुए इस नाटक का निर्देशन नीतेश उपाध्याय ने किया।उसने कहा था का कालखंड प्रथम विश्वयुद्ध का है। उस वक्त अमृतसर की गलियों में शुरू हुई किशोर उम्र की प्रेमकथा का अंत बहुत मार्मिक है। नाटक में बालक लहना सिंह का एक बालिका के प्रति प्रेम और फिर २५ बरस बाद उससे सूबेदारनी के रूप मिलना, सूबेदारनी का युद्ध के दौरान अपने पति और युवा बेटे के प्राणों की रक्षा की प्रार्थना करना और लहना सिंह का उस वचन को निभाने की कथा है उसने कहा था। नाटक में यूरोप की ठंड में युद्ध के मोर्चे पर डटे पंजाब के जवानों की आपसी बातचीत और लहना सिंह का बुद्धिमानी से जर्मन फौजी अधिकारी को पहचान कर अपने सैनिकों की रक्षा आदि के प्रसंग भी मंचित किए गए।नाटक में लहना सिंह के रूप में संजीव यादव का अभिनय सहज था। सूबेदार बने थे अतुल पठारी, सूबेदारनी की भूमिका में रत्ना पाराशर, वजीरा के रूप में राज राजपूत और बोधा सिंह बने थे सुनील मेवाड़ा। बांग्ला थिएटर फेस्टिवल प्रारंभ, शनिवार को बांग्ला लेखक नारायण गंगोपाध्याय की रचनाओं पर आधारित नाटक टेनीदा का हुआ मंचनइंदौर. बंगाली क्लब द्वारा पश्चिम बंगाल के संस्कृति विभाग के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय बांग्ला नाट्य समारोह शनिवार शाम रवींद्र नाट्यृह में प्रारंभ हुआ। पहले दिन कोलकाता के थिएटर ग्रुप दृश्यपट ने नाटक टेनी दा पेश किया। यह नाटक बांग्ला लेखक नारायण गंगोपाध्याय की रचनाओं पर आधारित है। दरअसल नारायण गंगोपाध्याय ने अपनी कहानियों और उपन्यास में टेनी दा नामक एक पात्र रचा है, जो बंगाल के पाठकों में बेहद लोकप्रिय है। गंगोपाध्याय की कुछ रचनाओं का नाट्य रूपांतर किया है उज्ज्वल मंडल ने और निर्देशन किया अनिर्बान भट्टाचार्य ने। टेनी दा एेसा युवक है जो बस्ती के नुक्कड़ पर बैठकर अपनी रोचक किस्सागोई से अपने उम्र के लोगों का चहेता है पर बड़ी उम्र के लोग उसे पसंद नहीं करते क्योंकि वह न तो ठीक से पढ़ाई कर पाया और न कोई काम करता है। वह बड़ी-बड़ी बातें करता है, जो कभी शेखचिल्ली की तरह लगती हैं। हंसमुख और हाजिर जवाब टेनी दा कई कॉमिक सिचुएशन पैदा करता है। कहानी में मोड़ तब आता है जब बस्ती का एक बच्चा किडनैप हो जाता है। बड़ी-बड़ी बातों करने वाला टेनी और उसके साथी अचानक ही उस बालक को वापस लाने की ठान लेते हैं और कोशिश में जुट जाते हैं। टेनी दा का मकसद बच्चे को वापस लाना तो है साथ ही मोहल्ले में अपनी पोजिशन मजबूत करना भी है। आखिरकार टेनी दा बच्चे को छुड़ा लाते हैं। निर्देशक अनिर्बान भट्टाचार्य ७० के दशक का माहौल बनाने में कामयाब रहे हैं। टेनी दा के रूप में उदवस रॉय का सहज अभिनय दर्शकों का भा गया। टेनी के साथी हाबुल, काबला और प्याला के रूप में उज्ज्वल मंडल, अत्रि भट्टाचार्य और उत्सव रूथ का अभिनय सहज था। अन्य भूमिकाओं में थी कोयल डे, तनुश्री चक्रवर्ती, नीलिमा बिस्वास, संदीप साहा आदि।