कांग्रेस नेता शुक्ला के इस बयान के बाद से शहर में अनावश्यक तोडफ़ोड़ से छुटकारा मिलने की प्रबल संभावना बन गई है, लेकिन देखने वाली बात यह भी है कि प्रदेश में भले कांग्रेस का राज है, मगर स्थानीय सरकार यानी नगरीय निकाय में भाजपा का कब्जा है। ऐसे में देखना है कि अब किसकी ज्यादा चलती है। जानकारों का कहना है कि इंदौर नगर निगम भले ही भाजपा की हो, लेकिन प्रदेश सरकार की सहमति के बिना व्यापक स्तर पर तोडफ़ोड़ व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं है। वैसे भी निगम के अफसरों में भी जल्द ही बड़ा बदलाव होगा, जिसके बाद प्रदेश सरकार की पसंद वाले अफसर यहां भेजे जाएंगे।
गौरतलब है कि शहर के विकास, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट और सड़क चौड़ीकरण के नाम पर व्यापक स्तर पर मकान-दुकानों की तोडफ़ोड़ शहर के विभिन्न इलाकों में हुई। इसे लेकर हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक याचिकाएं लगी थीं और बिना मुआवजे व उचित व्यवस्थापन के की गई तोडफ़ोड़ का विरोध किया गया था। माना जा रहा है कि अब प्रदेश में कांग्रेस सरकार के आने के बाद इस तरह की मनमानी तोडफ़ोड़ पर अंकुश लगेगा। शहर में कनाडिय़ा रोड, महूनाका चौराहा से टोरी कॉर्नर, बड़ा गणपति से राज मोहल्ला चौराहा (गणेशगंज), सरवटे से गंगवाल बस स्टैंड, छावनी, बड़ा गणपति से जिंसी बस डिङपो तक तोडफ़ोड़ की गई गई। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत शहर में अन्य कई जगह सड़क चौड़ीकरण करने के लिए तोडफ़ोड़ होगी, लेकिन कांग्रेस के मोर्चा खोलने पर अब यह काम करने में मुश्किल होगी।