प्राइज को आधार बनाने सोच गलतदीक्षित ने युवाआें से बिजनेस सफल बनाने के लिए पैसे को आधार बनाने की सोच न रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि अगर पैसे को आधार बनाएंगे, तो बिजनेस सफल होने के चांस कम हैं। अगर आप किसी प्रोडक्ट की प्राइज कम करके सोचते हैं कि सफल हो जाएंगे, तो वह दूसरा बिजनेसमैन भी कर सकता है। हमेशा आप अपनी वेल्यू और विजन क्लियर रखें और उनके आधार पर बिजनेस करें, तो जरूर सफल होंगे।प्रोडक्ट सेल करने के लिए कंटेंट मार्केटिंग और टॉरगेट एडवरटाइजिंग में बैलेंस जरूरीसमिट में आईं कंटेंट मैनेजर हिमिका गांगुली ने कंटेंट मार्केटिंग और टॉरगेट एडवरटाइजिंग में अंतर को बताया। उन्होंने कहा कि कंटेंट मार्केटिंग में खरीददार की नीड को समझकर ब्रांड की पब्लिसिटी की जाती है, जबकि टॉरगेट एडवरटाइजिंग में कंज्यूमर की लाइफ स्टाइल को समझकर एेसा कंटेंट रखते हैं कि वे खरीदने के लिए बाध्य हो जाएं। वहीं कंटेंट मार्केटिंग में क्विक रिस्पांस देखा जाता है, तो एडवरटाइजिंग में लांग टर्म रिस्पांस को ध्यान में रखते हैं। इसमें कंज्यूमर के साथ रिलेशन डेवलप करते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि प्रोडक्ट को सफल बनाना है, तो कंटेंट और एडवरटाइजिंग दोनों में बैलेंस होना जरूरी है।अगर आंबेडकर राजनीतिज्ञ न होते, तो अर्थशास्त्री होतेडॉ भीमराव आंबेडक के आर्थिक विचारों पर आधारित समिट के पहले सत्र में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य जयशंकर गुप्ता ने कहा कि भीमराव आंबेडकर एक बहुत बड़े अर्थशास्त्री थे। अगर वे राजनीतिज्ञ न बनते, तो दुनिया के नामी अर्थशास्त्रियों मे से एक होते। उन्होंने बताया कि डॉ भीमराव आंबेडकर ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से इवोल्यूशन ऑफ पब्लिक फायनेंस इन ब्रिटिश इंडिया विषय पर पीएचडी की थी। उनकी इस थीसिस की अनुशंसाओं पर ही हमारे यहां भारतीय रिजर्व बैंक बना। हालांकि अर्थशास्त्र के इतने ज्ञाता होने के बाद भी अर्थशास्त्री के तौर पर आंबेडकर की पहचान न होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे और उस समय कानून के ज्ञाता के तौर पर इनकी ज्यादा जरूरत थी, इसलिए इन्हें अर्थशास्त्री के तौर पर नहीं अपनाया गया।[typography_font:14pt;” >आर्थिक समानता आने पर टूट जाती है जातिप्रथासमिट में एडिटर्स ऑफ गिल्ड के पूर्व महासचिव प्रकाश दुबे ने आंबेडकर के आर्थिक चिंतन पर कहा कि आंबेडकर समाज में आर्थिक समानता के पक्षधर थे। वे कहते थे कि आर्थिक समानता आने पर समाज से जाति प्रथा टूट जाती है और यह समानता लाने के लिए विद्रोह करना पड़ता है। आखिर अर्थशास्त्री होने के बावजूद आंबेडकर दलितों के नेता बनकर रह गए, इस सवाल पर दुबे ने कहा कि आंबेडकर को दलित नेता के तौर पर पक्ष और विपक्ष दोनों के नेता एक्सेप्ट कर रहे थे। इसलिए उनकी दूसरी छवि सामने नहीं आ पाई।