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16 की उम्र में पाकिस्तान से इंदौर आए नेमनाथ जैन, ‘सोया मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से हो गए फेमस

locationइंदौरPublished: Jan 27, 2020 10:58:59 am

शहर के उद्योगपति को पद्मश्री, इंदौर और किसानों को समर्पित किया सम्मान
एसजीएसआइटीएस से इंजीनियरिंग की फिर रखी प्रेस्टीज समूह की नींव

16 की उम्र में पाकिस्तान से इंदौर आए नेमनाथ जैन, ‘सोया मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से हो गए फेमस

16 की उम्र में पाकिस्तान से इंदौर आए नेमनाथ जैन, ‘सोया मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से हो गए फेमस

इंदौर. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर वर्ष 2020 के लिए पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई। पद्मश्री पाने वालों में शहर के ख्यात उद्योगपति डॉ. नेमनाथ जैन भी शामिल हैं। उन्होंने यह सम्मान कर्मभूमि इंदौर, सोयाबीन किसानों व सोया उद्योग को समर्पित किया। सोया मैन ऑफ इंडिया के नाम से विख्यात डॉ जैन देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान के रावलपिंडी से 16 की उम्र में इंदौर आए। उन्होंने साधारण नौकरी करते हुए एसजीएसआइटीएस से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। वे पहली बैच के टॉपर रहे। जिस कंपनी में नौकरी कर रहे थे, उसने ट्रेनिंग के लिए लंदन भेजा। वहां से लौटकर उन्होंने कंपनी को आगे बढ़ाया और बाद में कंपनी में चीफ एक्जीक्यूटिव बने। उनके द्वारा लिखित आत्मकथा – ‘ग्राउंड टू ग्लोरी’ अमेजन पर वर्ष 2016 में बेस्ट सेलर किताब की श्रेणी में शामिल हुई।
इसलिए दिया गया सम्मान

88 वर्षीय नेमनाथ जैन को ट्रेड एंड इंडस्ट्री के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री के लिए चुना गया है। उन्होंने बताया, मेरे इस सफर में जाने कितने लोगों का साथ मिला। मैं कह सकता हूं कि पूरा हिंदुस्तान, पूरा मप्र और पूरा जैन समाज मेरे साथ है। नौकरी के दौरान मुझे लगा कि मुझे अपनी भूमि और किसानों के लिए कुछ करना है इसलिए प्रेस्टीज संस्था शुरू की। इसमें ऑयल मिल और सोयाबीन प्रोसेसिंग की मशीनें लगाई। खुशी इस बात की है कि हर यूनिट अपने हाथ से लगाई। मेरे दोनों बेटे भी इसमें शामिल हो गए। 42 साल के इस सफर में ऊंच-नीच होती रही, लेकिन ईश्वर ने हर कदम पर मेरा साथ दिया। आज गर्व के साथ कह सकता हूं कि सोयाबीन उत्पादक आत्मा से मुझसे जुड़ा हुआ है। मैं मानता हूं कि उनकी उन्नति में ही मेरी उन्नति है।
बेटों से जन्मदिन पर मांगा यह गिफ्ट

नेमनाथ कहते हैं, जब 60 साल का हुआ तो मैंने बेटों से कहा कि मुझे तोहफा देने के बजाय हमने जो अर्जित किया है वह समाज में लौटाने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा जाए। इसके बाद वर्ष 1994 में प्रेस्टीज इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च की शुरुआत हुई। इंदौर के बाद मंदसौर, ग्वालियर और देवास में यह आगे बढ़ा। स्कूल भी शुरू किए। आज प्रेस्टीज इंस्टिट्यूट्स में 13 हजार बच्चे बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही अब तक 50 हजार बच्चे पढक़र निकल चुके हैं, जो अपने क्षेत्र में सफलता से काम कर रहे हैं। अब जल्द ही वल्र्ड प्रेस्टीज यूनिवर्सिटी शुरू करने जा रहे हैं।
कई पुरस्कारों से नवाजे गए

उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। वर्ष 2011 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, पूर्व राष्ट्रपति स्व ज्ञानी जैल सिंह द्वारा उद्योग विभूषण पुरस्कार, 1983 और 1987 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति मोहम्मद हिदायतुल्लाह द्वारा उद्योग पात्र पुरस्कार।
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