scriptदिया मिर्ज़ा का मिस एशिया पेसिफिक से फिल्म प्रोडूसर बनने तक का सफर | interview of dia mirza | Patrika News
इंदौर

दिया मिर्ज़ा का मिस एशिया पेसिफिक से फिल्म प्रोडूसर बनने तक का सफर

यदि हम कहानियों को मीडियम बनाकर लोगों से कम्यूनिकेट करें तो सोशल चेंज लाया जा सकता है। अच्छे कंटेंट के क्रिएशन से खुशी मिलती है।

इंदौरOct 06, 2017 / 02:11 pm

अर्जुन रिछारिया

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इंदौर. आप जब अच्छे मुकाम पर पहुंच जाते हैं तो समाज को लौटाना शुरू करना चाहिए। मुझे लगता है कि मैंने वह मुकाम हासिल कर लिया है और यही वजह है कि मैं एन्वायर्नमेंट और बच्चों से जुड़े कई सोशल प्रोजेक्ट के साथ काम कर रहीं हूं। इस तरह के काम करने से आपको जो इंटर्नल हैप्पीनेस मिलती है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
यह कहना है बॉलीवुड दीवा दीया मिर्जा का। वह गुरुवार को इंदौर में थी। इस दौरान पत्रिका से बातचीत में उन्होंने कहा कि इंफोटेनमेंट इंडस्ट्री लोगों का मनोरंजन के साथ जरूरी सूचना भी देती है। यदि हम कहानियों को मीडियम बनाकर लोगों से कम्यूनिकेट करें तो सोशल चेंज लाया जा सकता है। अच्छे कंटेंट के क्रिएशन से खुशी मिलती है। मैंने फिल्में प्रड्यूस करना इसलिए शुरू किया क्योंकि मुझे एहसास हो गया था कि मैं जैसी फिल्मों में काम करना चाहती हूं या फिल्मों के जरिए जो संदेश देना चाहती हूं वह तभी संभव है जब मैं फिल्में खुद ही बनाऊं।
उन्होंने कहा कि एक फिल्म में काफी क्षमता और स्पेस होती है। यदि निर्माता और निर्देशक चाहे तो फिल्म से मनोरंजन के साथ सामाजिक संदेश भी दे सकते हैं। बॉलीवुड में लोगों को स्टिरियो टाइप कर दिया जाता है। लोग मानते हैं कि यदि हीरोइन ने शादी कर ली तो उसका कॅरियर खत्म हो गया। अगर वह प्रोडक्शन में काम कर कर रही है तो वह एक्टिंग नहीं करना चाहती है। मैं इन सभी फील्ड में काम कर अवधारणा बदलना चाहती हूं।
संजू बाबा को एक फिल्म में दिखाना पॉसिबल नहीं : संजय दत्त की बॉयोपिक में मान्यता दत्त का किरदार निभा रही दीया ने कहा कि उनकी लाइफ को बयां करने के लिए एक फिल्म काफी नहीं है। उनकी लाइफ के एंगल दिखाने के लिए कई फिल्में बनानी पड़ेगी।
इंदौर में मिलता है सुकून
इंदौर मेरी फेवरेट सिटी में से एक है। यहां आती हूं तो सुकून मिलता है। इस बार मैंने नोटिस किया कि सफाई में नंबर-१ इंदौर की सडक़ों पर एक भी पॉलिथीन नहीं दिखाई दी। किसी भी शहर के लिए इससे बड़ा अचीवमेंट कुछ नहीं हो सकता है। जानना चाहती हूं कि इंदौर में कौन सा वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम यूज किया जा रहा है।
लाखों बच्चे सडक़ पर
दीया ने कहा कि रेयान इंटरनेशनल में बच्चे की मौत दुखद घटना थी, लेकिन वह नेशनल इशू इसलिए बना क्योंकि बड़े स्कूल का मामला था। आज भी देशभर में लगभग २० लाख बच्चे सडक़ों पर हैं, लेकिन उनके बारे में कोई नहीं सोचता। यह हमारी जिम्मेदारी है कि इन बच्चों को समाज की मुख्यधारा में जोडऩे में मदद करें।
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