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इंदौर

31 साल में बदले 16 कलेक्टर, कागज से बाहर नहीं अाए 300 बिस्तर

मामला जिला अस्पताल की जमीन हस्तांतरण का, अब फाइल खंगाली तो पता चला दुग्ध संघ पहले ही दे चुका था आवेदन

इंदौरAug 03, 2018 / 07:42 pm

रणवीर सिंह

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जिला अस्पताल का शिफ्टिंग प्लॉन बनाया

इंदौर. जिला अस्पताल को 300 बिस्तर का बनाने का प्रोजेक्ट अभी भी जमीन हस्तांतरण के पेंच में उलझा है। अफसरशाही का शहर के स्वास्थ्य को लेकर रवैया कितना लापरवाही भरा रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह प्रक्रिया 31 साल से कागजों में दफन है। इस दौरान 16 कलेक्टर बदल चुके हैं।
मालूम हो, शहर के पश्चिम क्षेत्र में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए धार रोड पर शासन ने सांची दुग्ध संघ की जमीन पर जिला अस्पताल की शुरूआत वर्ष 1985 में की थी। तब से तबेले की इमारत में अस्पताल चल रहा है। 1987 में संघ ने जमीन जिला अस्पताल के नाम हस्तांतरित करने के लिए रजामंदी देते हुए प्रशासन को पत्र लिखा था। इस पक्ष के आधार पर राजस्व दस्तावेजों में 7.15 एकड़ जमीन पर कब्जेधारी के रूप में जिला अस्पताल व स्वास्थ्य विभाग का नाम चढ़ा दिया गया। इसके बाद जब भी अस्पताल की इमारत के निर्माण के प्रस्ताव तैयार हुए स्वास्थ्य विभाग ने जमीन हस्तांतरित करने के लिए पत्र लिखा, लेकिन किसी ने रुचि नहीं ली और प्रोजेक्ट हर बार ठंडे बस्ते में चला जाता। संघ को मांगलिया में जमीन देते वक्त तय हुआ था कि अस्पताल परिसर की पूरी जमीन खाली की जाएगी, लेकिन वर्षों बाद भी यहां स्टाफ क्वार्टर में कर्मचारियों के परिवार रह रहे हैं। अब संघ स्टाफ क्वार्टर बनाकर देने या पुराने क्वार्टर छोड़ कर जमीन लेने की बात कह रहा है।
यह हैं जिम्मेदार

स्वास्थ्य विभाग

स्वास्थ्य विभाग ने हर बार नया प्रस्ताव बनाने के बाद हस्तांतरण के लिए पत्र लिखे, लेकिन प्रस्ताव भोपाल में अटकने के बाद सुध नहीं ली। स्थानीय स्तर पर सुनवाई नहीं होने पर भोपाल में भी किसी अधिकारी ने कार्यवाही नहीं की। नतीजा ३०० बिस्तर के अस्पताल प्रोजेक्ट के लिए ५० करोड़ रुपए का बजट मिलने के बाद भी हस्तांतरण नहीं होने से निर्माण एजेंसी काम नहीं शुरू कर पा रही है।
जिला प्रशासन

स्वास्थ्य विभाग ने दर्जनों पत्र लिखे, रोगी कल्याण समिति की बैठक में हर बार मामला उठा, लेकिन किसी कलेक्टर ने इस ओर कोई कदम नहीं उठाया। पद संभालने के बाद कलेक्टर निशांत वरवड़े ने तो कैबिनेट द्वारा स्वीकार प्रोजेक्ट में ही बदलाव कर १००-१०० बिस्तर के तीन अस्पताल बनाने का प्रस्ताव तैयार करवा लिया। पत्रिका द्वारा मु²ा उठाने के बाद फैसला वापस लेना पड़ा।
दुग्ध संघ

दुग्ध संघ को वर्षों पहले मांगलिया में कई एकड़ जमीन मिलने के बाद भी स्टाफ क्वार्टर खाली नहीं किए। प्रोजेक्ट मंजूर होने के बाद प्रशासन से क्वार्टर के लिए मांग रखने की योजना बना ली। वर्षों से रह रहे कर्मचारियों ने मामले में विधिक कार्रवाई की तो प्रोजेक्ट पर सीधा असर पड़ेगा।
यूं बनती रही योजनाएं

– 1985 में धार रोड स्थित गोविंद वल्लभ पंत जिला चिकित्सालय दुग्धसंघ के भवन (दूध डेयरी) में शुरू हुआ था।

– 1987 में दुग्ध संघ ने जमीन अस्पताल के नाम हस्तांतरित करने पर अनापत्ति का पत्र प्रशासन को लिखा।
– 1987 से 2000 तक कई बार स्वास्थ्य विभाग ने हस्तांतरण के लिए पत्र लिखे, कलेक्टरों की बैठकों में भी मामला उठा।

– 2005 में यहां नई इमारत का प्रस्ताव तैयार कर जमीन हस्तांतरण की प्रक्रिया दोबारा शुरू की गई। स्वास्थ्य विभाग और कलेक्टर ऑफिस में तीन साल तक फाइल घूमती रही।
– 2008 में नई बिल्डिंग का प्रस्ताव तैयार किया। दो साल बाद १५० बेड के अस्पताल का प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ।

– 2014 में 25 करोड़ रुपए की लागत से यहां 100 बिस्तर की पांच मंजिला बिल्डिंग के निर्माण की नई योजना बनी।
– 2015 में आइडीए ने 10 करोड़ रुपए की लागत से इमारत बनाने की बात कही, लेकिन हर बार की तरह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

– 2016 में अस्पताल की मौजूदा बिल्डिंग को तोड़े बिना 23 हजार वर्गफीट जमीन पर दो मंजिला इमारत बनाने की प्लानिंग की गई। इसके लिए 12 करोड़ रुपए का प्रस्ताव भी राज्य शासन को भेजा गया, लेकिन मंजूर नहीं हुआ।
– 2017 में स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह ने 300 बिस्तर का अस्पताल बनाने की घोषणा की। एक साल में कैबिनेट में प्रस्ताव पास होने के साथ 300 बेड के अस्पताल के लिए 50 करोड़ रुपए और स्टाफ क्वार्टर के लिए 4 करोड़ रुपए का बजट पास हो गया।
– मई 2018 में कलेक्टर निशांत वरवड़े ने स्वास्थ्य विभाग को 300 बिस्तर की बजाए 100 बिस्तर की योजना बनाने को कहा। 100-100 बिस्तर के दो अस्पतालों के लिए खजराना और गांधी नगर में जगह ढूंढऩे को कहा। पत्रिका द्वारा आवाज उठाने पर प्रस्ताव निरस्त कर दो नए अस्पतालों के लिए नया प्रस्ताव तैयार किया गया।
– बीते चार माह से निर्माण एजेंसी पीआइयू काम शुरू करने के लिए स्वास्थ्य विभाग से दस्तावेज के साथ पजेशन मांग रही है, लेकिन हस्तांतरण नहीं होने के कारण मामला अटका है।

31 साल में यह कलेक्टर आकर चले गए
ओपी रावत : 1986 से 1988

भागीरथ प्रसाद : 1988 से 1989

सुधीर नाथ : 1989 से 1990

एसवी अय्यर : 1990 से 1991

के सुरेश : 1991 से 1992
एमएम उपाध्याय : 1992 से 1993

एसआर मोहंती : 1993 से 1996

एम गोपाल रेड्डी : 1996 से 1998

मनोज श्रीवास्तव : 1998 से 2001

मो. सुलेमान : 23001 से 2004
राजेश राजौरा : 2004 से 2005

विवेक अग्रवाल : 2005 से 2008

राकेश श्रीवास्तव : 2008 से 2010

राघवेन्द्रसिंह : 2010 से 2012

आकाश त्रिपाठी : 2012 से 2015

पी. नरहरि : 2015 से 2017

दो माह पहले पद संभाला है, पुराने कर्मचारियों से जानकारी ली जा रही है। हस्तांतरण की प्रक्रिया मल्हारगंज तहसील कार्यालय से होना है। हम शिफ्टिंग की तैयारी कर चुके हैं। पीसी सेठी अस्पताल हैंडओवर होने के बाद अधिकतर हिस्सा वहां ले जाया जाएगा। हुकुमचंद पॉली क्लीनिक में डायलिसिस सेंटर और मल्हारगंज अस्पताल में ओपीडी शिफ्ट की जाएगी। ओपीडी और टीकाकरण का काम डीआइसी इमारत में चलेगा।

– डॉ. एमपी शर्मा, सिविल सर्जन

जमीन संघ को शासन ने अलॉट की थी। यहां डेयरी कॉलोनी के रूप में 44 स्टाफ क्वार्टर बने हैं, जिनमें कुछ कर्मचारियों के परिवार रह रहे हैं। प्रशासन दुग्ध संघ को जमीन हस्तांतरण का प्रस्ताव देता है तो उस पर निर्णय होगा। संघ को अपने कर्मचारियों के क्वार्टर के लिए जगह चाहिए।

– एएन द्विवेदी, सीइओ, दुग्ध संघ

सिविल सर्जन की ओर से जमीन हस्तांतरण के लिए पत्र मिला है। इस संबंध में दुग्ध संघ से भी एनओसी ले रहे हैं। इसके बाद सारी प्रक्रिया की जाएगी। प्रस्ताव बनाकर कलेक्टर को पेश किया जाएगा।

– रेखा सचदेवा, तहसीलदार, मल्हारगंज

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