पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रदेश की 29 सीटों में से दो ही जीती थी। इनमें एक छिंदवाड़ा व दूसरी गुना थी। इस बार कांग्रेस 29 में से अधिक सीटें जीतने की कोशिश में लगी है। साथ ही उन सीटों पर भी फोकस किया जा रहा है, जिन पर कांग्रेस लगातार 8 से 9 बार हारती आ रही है। प्रदेश की २९ लोकसभा सीटों में से अधिकतर पर जीत का परचम लहराए, इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नाथ ने पिछले दिनों जिला और शहर अध्यक्षों को एक आदेश जारी किया। इसमें स्पष्ट कहा गया कि कोई भी कांग्रेस नेता और पदाधिकारी अपना क्षेत्र छोडक़र दूसरी लोकसभा सीट पर काम करने नहीं जाएगा। अगर ऐसा पाया जाता है, तो संबंधित के खिलाफ कार्रवाई होगी। कोई नेता अपने क्षेत्र छोडक़र न जाए। यह देखने की जिम्मेदारी जिला और शहर अध्यक्षों को दी गई। इनकी अनदेखी के चलते कांग्रेसियों ने नाथ के आदेश की हवा निकालना शरू कर दी है, क्योंकि चुनावी मैदान में उतरे अपने राजनीतिक आकाओं के क्षेत्र में काम करने के लिए समर्थक सहित अन्य कांग्रेस नेताओं ने उनके क्षेत्रों में जाना शुरू कर दिया है। अभी लोकल नेताओं ने भोपाल और गुना की ओर रूख किया है। भोपाल से दिग्विजय सिंह और गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़ रहे हैं। कई नेता छिंदवाड़ा भी पहुंचे हैं। यहां पर कमल नाथ के बेटे नकुल नाथ चुनावी मैदान में हैं। इनके क्षेत्र में इंदौर को नेताओं ने पहुंचकर बैठकें लेना शुरू कर दिया है। इंदौरी नेताओं के क्षेत्र छोडऩे से पंकज संघवी के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है, क्योंकि चुनाव की कमान संभालने वाले लोकल नेता बचेंगे नहीं। इस कारण चुनाव का पूरा मैंनेजमेंट उन्हें ही संभालना होगा। हालांकि दिग्विजय सिंह और सिंधिया के अलावा खंडवा से अरुण यादव और रतलाम-झाबुआ सीट से उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया के चुनाव की कमान भी संभालने के लिए कई नेता रवाना होने की तैयारी में हैं। धार, मंदसौर, देवास-शाजापुर और उज्जैन भी नेता जाने में लगे हैं।
कई नेताओं को बना दिया प्रभारी लोकसभा चुनाव के चलते इंदौर से कई नेताओं को दूसरी सीटों पर प्रभारी बना दिया गया है। इन नेताओं ने अपने-अपने प्रभार वाले क्षेत्र में काम भी संभाल लिया है। इसको लेकर कांग्रेस नेताओं ने ही सवाल खड़ा किया है कि लोकल नेताओं को दूसरी लोकसभा का प्रभारी बनाने के बजाय अपने क्षेत्र की ही जिम्मेदारी देकर प्रत्याशी को जिताने का काम सौंपा जाए। अगर प्रभारी बनाना है तो लोकल नेता को ही बनाया जाए। दूसरी सीट पर नेताओं को प्रभारी बनाए जाने से मुसीबत ही खड़ी होगी, क्योंकि पहले ही कांग्रेस का संगठन कमजोर है।