एफएसआई के अनुसार दो माह में सबसे ज्यादा जंगलों में आग लगने की घटनाएं मध्यप्रदेश में हुईं हैं। इस सिस्टम से विभाग के अमले को तत्काल मोबाइल पर मैसेज कर दिया जाता है। अभी तक जंगल में आग लगने पर विभाग को ग्रामीणों और स्टाफ से ही पता चलता था। जब तक कार्रवाई की जाती थी, कई हेक्टेयर जंगल राख हो चुका होता था, इसलिए विभाग और एफएसआई के संयुक्त प्रयास से आग पर काबू पाया जा रहा है। विभाग के मुख्यालय पर सैटेलाइट के जरिए वनक्षेत्रों पर नजर रखी जा रही है। आग लगते ही तत्काल सीसीएफ, सीएफ, एसडीओ और रेंजर को जानकारी भेजते हैं, जिसमें रेंज, वनक्षेत्र का नाम और कक्ष क्रमांक रहता है। कुल मिलाकर 15 मिनट में ही संबंधित स्टाफ तक आग की जानकारी, लोकेशन आदि मिल जाती है।
बीच में बंद हो गई थी सेवा सैटेलाइट से जानकारी मिलने का सिलसिला 2012 से जारी है। केंद्र सरकार और एफएसआई के बीच 2017 में अनुबंध खत्म हो गया था। इसके एक वर्ष तक यह सेवा प्रदेश में बंद रही। 2018 अंत तक सिस्टम को दोबारा सैटेलाइट से जोड़ा गया।
लगातार निगरानी मुख्यालय में कंट्रोल रूम पर 24 घंटे स्टाफ मौजूद रहता है, जो कि सैटेलाइट के माध्यम से नजर रखता है। आग लगने पर तत्काल संबंधित सर्कल में मैसेज के माध्यम से सूचना भेजी जाती है। इसके बाद स्टाफ को तत्काल आग बुझाने भेजते हैं।
इसलिए लगती है आग मुख्य तौर पर अतिक्रमण के लिए स्थानीय ग्रामीण आग लगा देते हैं, ताकि वे वनक्षेत्र पर कब्जा कर सकें। इसके साथ ही गर्मी में तापमान बढऩे से सूखे पत्तों में आग लग जाती है, जो देखते ही देखते विकराल रूप धारण कर लेती है। जंगल से गुजरने के दौरान लोग बीड़ी-सिगरेट जलाकर फेंक देते हैं, जिससे भी आग लग जाती है।